Shiv Stuti
श्री शिवाय नमस्तुभ्यं
ॐ नमः शिवाय
“कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसार सारं भुजगेंद्रहारम् |
सदा वसंतं हृदयारविंदे, भवं भवानी सहितं नमामि ||
ऊपर दिए गए मंत्र का उच्चारण कर शिव जी का ध्यान करें | फिर शिव स्तुति का पाठ करें, अंत में ‘ ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का 108 बार तुलसी या सफेद चंदन की माला से जप करें | जप के साथ अर्थ की भावना करने से कार्य सिद्धि जल्दी होती है |
शिव स्तुति Shiv Stuti in Hindi
|| दोहा ||
श्री गिरिजापति वंदिकर, चरण मध्य शिरनाय
कहत अयोध्या दास तुम, मो पर होहु सहाय ||
नंदी की सवारी, नाग अंगीकार धारी,
नित संत सुखकारी, नीलकंठ त्रिपुरारी है |
गले मुण्डमाला धारी , सिर सोहे जटाधारी ,
वाम अंग में बिहारी, गिरिजा सुतवारी है ||
दानी देख भारी , शेष शारदा पुकारी ,
काशीपति मदनारी, कर त्रिशूल चक्रधारी है |
कला उजियारी, लख देव सो निहारी,
यश गावे वेद चारी, सो हमारी रखवारी है ||
शंभू बैठे है विशाला, भंग पीवे सो निराला,
नित रहे मतवाला, अहीं अंग पै चढ़ाएं है |
गले सोहे मुण्डमाला , कर डमरु विशाला,
अरु ओढ़े मृगछाला, भस्म अंग में लगाए हैं ||
संग सुरभि सूतशाला, करे भक्त प्रतिपाला,
मृत्यु हरे अकाला, शिश जटा को बढ़ाए हैं |
कहे रामलला करो मोहि तुम निहाला ,
गिरिजापति कसाला, जैसे काम को जलाए हैं ||
मारा है जलंधर और त्रिपुर को संहारा जिन ,
जारा है काम जाकर शीश गंगधारा है |
धारा है अपार जासु, महिमा है तीनो लोक ,
भाल सोहै इंदु जाके , सुषमा की सारा है ||
सारा अहीबात सब, खायो हलाहल जानि,
भक्तन के अधारा, जाहि वेदन उचारा है |
चारों है भाग जाके, द्वार है गिरीश कन्या ,
कहत अयोध्या सोई, मालिक हमारा है ||
अष्ट गुरु ज्ञानी जाके , मुख वेदबानी शुभ ,
सोहै भवन में भवानी, सुख संपत्ति लहा करें |
मुंडन की माला जाके, चंद्रमा ललाट सोहै ,
दासन के दांत जाके, दारिद दहा करें ||
चारों द्वार बंदी, जाके द्वारपाल नंदी ,
कहत कवी अनंदी, नर नाहक हा हा करें |
जगत रिसाय , यमराज की कहा बसाय,
शंकर सहाय, तो भयंकर कहा करें ||
|| सवैया ||
गौर शरीर में गौर विराजत,
मौर जटा सिर सोहत जाके |
नागन को उपवित् लसै अरु ,
भाल विराजत शशि ताके ||
दान करें पल में फल चारी,
और टारत अंक लिखें विधना के |
शंकर नाम नि:शंक सदा ही,
भरोसे रहै निशिवासर ताके ||
|| दोहा ||
मंगसर मास हेमंत ऋतु, छठा दिन है शुभ बुद्ध |
कहत अयोध्या दास तुम, शिव के विनय समृद्ध ||
शिव स्तुति का अर्थ Meaning of Shiv Stuti In Hindi
|| दोहा ||
श्री गिरिजापति वंदिकर, चरण मध्य शिरनाय
कहत अयोध्या दास तुम, मो पर होहु सहाय ||
अर्थ (शिव स्तुति दोहा)
मैं अयोध्यादास माता पार्वती के पति भगवान शंकर की वंदना करता हूं उनके चरणों में शीश नवाकर प्रार्थना करता हूं कि वह मेरी सहायता करें |
नंदी की सवारी, नाग अंगीकार धारी,
नित संत सुखकारी, नीलकंठ त्रिपुरारी है |
गले मुण्डमाला धारी , सिर सोहे जटाधारी ,
वाम अंग में बिहारी, गिरिजा सुतवारी है ||
अर्थ (शिव स्तुति )
नंदी जिनका वाहन है, नागों को जिन्होंने अपने अंगों पर धारण किया हुआ है, जो नित्य प्रति संत जनों को सुख प्रदान करने वाले हैं ; ऐसे नीलकंठ भगवान शंकर जी है | उन्हें हमारा प्रणाम स्वीकार हो|
जिनके गले में मुंडो की माला है, जो सिर पर जटा धारण किए हुए हैं; वाम अंग में पार्वती विराजमान है, ऐसे पर्वतों के राजा भगवान शंकर जी है ||
दानी देख भारी , शेष शारदा पुकारी ,
काशीपति मदनारी, कर त्रिशूल चक्रधारी है |
कला उजियारी, लख देव सो निहारी,
यश गावे वेद चारी, सो हमारी रखवारी है ||
अर्थ (शिव स्तुति )
शारदा और शेष द्वारा महादानी के रूप में स्तुत्य, काम- शत्रु, काशी पति शिव हाथ में त्रिशूल और चक्र धारण किए हुए हैं |
जिनकी उज्जवल कला को देवता भी निहारा करते हैं, चारों वेदों द्वारा स्तुत्य भगवान शंकर हमारी रक्षा करते हैं ||
शंभू बैठे है विशाला, भंग पीवे सो निराला,
नित रहे मतवाला, अहीं अंग पै चढ़ाएं है |
गले सोहे मुण्डमाला , कर डमरु विशाला,
अरु ओढ़े मृगछाला, भस्म अंग में लगाए हैं ||
अर्थ (शिव स्तुति) Shiv Stuti
जो निराली भांग को पिकर नित्य प्रति मदहोश रहते हैं, वे शंभू समाधि में लीन है, उनके अंगों पर सर्प शोभायमान है |
जिनके गले में मुंडो की माला शोभा दे रही है, जो हाथ में विशाल डमरु लिए है, मृगछाला को जिन्होंने अपने शरीर पर लपेट रखा है और शरीर पर भस्म लगाए हुए हैं ||
संग सुरभि सूतशाला, करे भक्त प्रतिपाला,
मृत्यु हरे अकाला, शिश जटा को बढ़ाए हैं |
कहे रामलला करो मोहि तुम निहाला ,
गिरिजापति कसाला, जैसे काम को जलाए हैं ||
अर्थ (शिव स्तुति )
देवों के शरण रूप, भक्त पालक, अकाल मृत्युहर्ता शिव सिर पर जटाओं को बढ़ाएं हुए हैं |
हे गिरजापति ! जैसे आपने काम को जलाया था, वैसे ही मेरी तृष्णा को जलाकर मुझे निहाल करें, यह रामलला का निवेदन है ||
मारा है जलंधर और त्रिपुर को संहारा जिन ,
जारा है काम जाकर शीश गंगधारा है |
धारा है अपार जासु, महिमा है तीनो लोक ,
भाल सोहै इंदु जाके , सुषमा की सारा है ||
अर्थ (शिव स्तुति )
जिन्होंने मगरमच्छ, त्रिपुर राक्षस का वध किया, जिन्होंने काम को जला डाला, जिनके शीश पर गंगा की धारा भी है |
गंगाधार- सी अपार महिमा वाले, जिनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है, वे समस्त सुखों के स्वामी शिव हमारे रक्षक है ||
सारा अहीबात सब, खायो हलाहल जानि,
भक्तन के अधारा, जाहि वेदन उचारा है |
चारों है भाग जाके, द्वार है गिरीश कन्या ,
कहत अयोध्या सोई, मालिक हमारा है ||
अर्थ (शिव स्तुति )
जिन्होंने बात ही बात में सारा जहर पी लिया, वे भक्तों के रखवाले भगवान शंकर है, जिनका वेदों ने गान किया है |
अयोध्यादास कहते हैं, कि जो यज्ञ के चारों भागों के स्वामी है, गिरिराज सुता जिनके साथ है, वही हमारे स्वामी है ||
अष्ट गुरु ज्ञानी जाके , मुख वेदबानी शुभ ,
सोहै भवन में भवानी, सुख संपत्ति लहा करें |
मुंडन की माला जाके, चंद्रमा ललाट सोहै ,
दासन के दांत जाके, दारिद दहा करें ||
अर्थ (शिव स्तुति ) Shiv Stuti
आठों गुरु जानते हैं , जिनका मुख ही चारों वेदों की वाणी का रूप है, जिनके भवन की स्वामिनी माता भवानी है, वह शिव सुख और संपत्ति के दाता है |
मुंडमाला धारी, मस्तक पर चंद्रधारी शिव, सेवकों के सेवक की भी दरिद्रता का नाश ( दाह) करने वाले हैं |
चारों द्वार बंदी, जाके द्वारपाल नंदी ,
कहत कवी अनंदी, नर नाहक हा हा करें |
जगत रिसाय , यमराज की कहा बसाय,
शंकर सहाय, तो भयंकर कहा करें ||
अर्थ (शिव स्तुति )
जिन्होंने नरक के चारों द्वार बंद करवा दिए हैं, जिनके द्वारपाल के रूप में नंदी विराजमान है, कभी आनंद कहते हैं कि ऐसे आनंद को देने वाले देवता के होते हुए भी लोग व्यर्थ ही हाहाकार करते हैं, क्योंकि-
सांसारिक लोगों की थोड़ी सी पूजा अर्चना से जो प्रसन्न हो जाते हैं और शंकर जी उनकी सहायता करते हैं तो ऐसे में यमराज की से बचना चाहते हैं तो शंकर जी के शरण में जाओ ||
|| सवैया ||
गौर शरीर में गौर विराजत,
मौर जटा सिर सोहत जाके |
नागन को उपवित् लसै अरु ,
भाल विराजत शशि ताके ||
दान करें पल में फल चारी,
और टारत अंक लिखें विधना के |
शंकर नाम नि:शंक सदा ही,
भरोसे रहै निशिवासर ताके ||
अर्थ सवैया
गौर वर्णवाली पार्वती जिनके वाम विराज रही है और जिनके शीश पर जटाओं का मुकुट सुशोभित है | जिन्होंने सर्पों का उपवित् (जनेऊ) पहन रखा है और चंद्रमा जिनके मस्तक पर विराजमान है |
जो पल भर में चारों फल ( धर्म, अर्थ, मोक्ष, और काम) को देने वाले हैं और भाग्य में लिखे को बदल सकते हैं- उनका नाम भगवान शंकर है और बिना किसी शंका के निरंतर उनके भरोसे पर रहना चाहिए ||
|| दोहा ||
मंगसर मास हेमंत ऋतु, छठा दिन है शुभ बुद्ध |
कहत अयोध्या दास तुम, शिव के विनय समृद्ध ||
अर्थ
अयोध्या दास जी कहते हैं कि भगवान शिव की महान कृपा से मार्गशीर्ष मास की षष्ठी तिथि, बुधवार के दिन यह कार्य संपन्न हुआ.
|| श्री शिवाय नमस्तुभ्यं ||
|| ॐ नमः शिवाय ||
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