Mahashivratri महाशिवरात्रि

Mahashivratri महाशिवरात्रि

आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार,

शिवरात्रि हर महीने आती है. उसे मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है | परंतु फाल्गुन माह में आने वाली शिवरात्रि महाशिवरात्रि कहलाती है | शिवरात्रि शब्द में ही हमें पता चल जाता है कि शिव की रात ! 

महाशिवरात्रि Mahashivratri पर भक्तजन भगवान शिव की आराधना पूजा में पूरी रात जगते हैं, इसी कारण यह महाशिवरात्रि कहलाती है | 

हिंदुओं में पूरे साल भर में, महीने मेंएवं सप्ताह मेंआने वाले हर छोटे-मोटे त्योहारों को घर-घर में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है | अपने रोजमर्रा की जिंदगी से हटकर यह त्यौहार मनाने से सकारात्मक एवं रिश्तो में जुड़ाव सा हो जाता है |

उसी में भगवान शिव शंकर यानी हमारे भोलेनाथ की उपासना सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं |  साप्ताहिक त्यौहारों में सोमवार भोलेनाथ को समर्पित होता हैं| मासिक त्यौहारों में शिवरात्रि का व्रत एवम पूजन का महत्व होता हैं.| 

वार्षिक त्यौहारों में महा शिवरात्रि, श्रावण माह, हरतालिका तीज आदि त्यौहारों का विशेष महत्व होता हैं|  शिव जी की पूजा का समय प्रदोष काल होता हैं | शिव जी के किसी भी उपवास की पूजा प्रदोष काल में करना उचित होता है| Mahashivratri

Mahashivratri
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मासिक शिवरात्रि  2024 में कब शुभ मुहूर्त है (Masik Shivratri 2024 Dates)

तारीख  महीना दिन शिवरात्रि
09 जनवरी मंगलवार मासिक शिवरात्रि
08 फरवरी गुरुवार मासिक शिवरात्रि
08 मार्च शुक्रवार महाशिवरात्रि
07 अप्रैल रविवार महा शिवरात्रि
06 मई सोमवार मासिक शिवरात्रि
04 जून मंगलवार मासिक शिवरात्रि
04 जुलाई गुरुवार मासिक शिवरात्रि
02 अगस्त शुक्रवार मासिक शिवरात्रि
01 सितंबर रविवार मासिक शिवरात्रि
30 सितंबर सोमवार मासिक शिवरात्रि
30 अक्टूबर बुधवार मासिक शिवरात्रि
29 नवंबर शुक्रवार मासिक शिवरात्रि
29 दिसंबर रविवार मासिक शिवरात्रि

 

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शिवरात्रि / महा शिवरात्रि व्रत एवम पूजन विधि (Shivratri / Mahashivratri Vrat Puja Vidhi):

  • शिव पूजा को प्रदोष काल में किया जाता है, जो सायं के समय और सवेरे के समय का होता है। उपवास के दौरान कोई भोजन नहीं किया जाता। दोनों समय में केवल फल ही खाया जाता है।
  • शिव पूजा में रुद्राभिषेक का महत्व बहुत अधिक होता है। कई लोग शिवरात्रि के दिन सभी परिवारजनों के साथ मिलकर रुद्राभिषेक करते हैं।
  • शिवरात्रि पर बत्ती जलाने का भी बहुत महत्व होता है। शिवरात्रि के लिए एक विशेष प्रकार की बत्ती को जलाकर उसके सामने बैठकर शिव ध्यान किया जाता है।
  • शिव पूजा में शिव पुराण, शिव पंचाक्षर, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा, शिव रुद्राष्टक, शिव के श्लोक, शहस्त्र नामों का पाठ किया जाता है।
  • शिव जी के ध्यान के लिए “ॐ” का ध्यान किया जाता है। “ॐ” के उच्चारण को बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। “ॐ” शब्द “ऊ” और “अम” दो शब्दों का मिश्रण है। ध्यान मुद्रा में बैठकर “ॐ” के उच्चारण से मानसिक शांति मिलती है। मन एकाग्रचित्त होता है। “ॐ” का महत्व हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों में सबसे अधिक होता है।
  • श्रावण माह में शिव जी को बहुत प्रिय होता है। इस माह में श्रावण सोमवार को विशेष रूप से भगवान शिव का व्रत किया जाता है। भक्त इस दिन शिव मंदिर जाकर पूजा अर्चना करते हैं और शिवलिंग पर जल अभिषेक करते हैं। इस दिन को श्रावण सोमवार व्रत के रूप में बहुत महत्व दिया जाता है|  और लोग इसे पूरे भाव से मानते हैं।
  • महाशिवरात्रि Mahashivratri के दिन भी शिव जी की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन लोग सारे दिन उपवास करते हैं और रात्रि में जागरण करते हैं। शिव मंदिरों में भक्तगण भजन की ध्वनि में लीन होते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं। इस दिन को भक्त इसे बहुत उत्साह से मनाते हैं।

Shiv Tandav

शिव रुद्राभिषेक (Shiv Rudrabhishek Mahatva) :

शिव रुद्राभिषेक का पुरे श्रावण माह बहुत अधिक महत्व होता हैं. इसमें शिव के नाम का उच्चारण कर कई प्रकार के द्रव पदार्थ से श्रद्धा के साथ शिव जी का स्नान कराया जाता है, इसे शिव रुद्राभिषेक कहते हैं.

यजुर्वेद में शिव रुद्राभिषेक का विवरण दिया गया है, लेकिन उसका पूर्ण रूप से पालन करना कठिन होता है, इसलिये शिव के उच्चारण के साथ ही अभिषेक की विधि करना उचित माना गया हैं. Mahashivratri

रुद्राभिषेक में लगने वाली सामग्री Rudrabhishek Samagri

  • जल
  • धतूरे का फुल, फल, अकाव के फुल , बेल पत्र
  • शहद
  • दूध (गाय का दूध )
  • दही
  • घी
  • सरसों का तेल
  • पवित्र नदी का जल
  • गन्ने का रस
  • शक्कर
  • जनैव
  • गुलाल , अबीर

 

यह सभी द्रव से शिवलिंग का स्नान करवाते हैं|  स्नान करवाते समय ‘ॐ नमः शियाव’ का जाप किया जाता हैं|

माना जाता है कि,पुरुषों ने ‘ॐ नमः शियाव’ और स्त्रियों ने ‘ नमः शियाव ॐ’ का जाप करना चाहिए | या फिर ‘श्री शिवाय नमस्तुभ्यं” का भी  जाप कर सकते हैं| Mahashivratri

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शिवरात्रि कहानी 1 (Shivratri Vrat Katha 1) :

एक बार भगवान शिव के क्रोध के कारण पूरी पृथ्वी जलकर भस्म होने की स्थिती में थी. उस वक्त माता पार्वती ने भगवान शिव को शांत करने के लिए उनसे प्रार्थना की उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर शिव जी का क्रोध शांत होता हैं| तब से कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन उपासना की जाती हैं| इसे शिव रात्रि व्रत कहते हैं| 

शिव रात्रि के व्रत से सभी प्रकार के दुखों का अंत होता हैं| संतान प्राप्ति के लिए , रोगों से मुक्ति के लिए शिवरात्रि का व्रत किया जाता हैं| 

शिवरात्रि कथा 2 Shivratri Vrat Story 2

एक बार भगवान विष्णु और  ब्रह्मा जी के बीच मत भेद हो गया था | दोनों में से कौन श्रेष्ठ हैं, इस बात को लेकर दोनों के बीच मन मुटाव हो जाता हैं|  तभी शिव जी एक अग्नि के स्तंभ के रूप में प्रकट होते हैं और विष्णु जी और ब्रह्माजी से कहते हैं कि मुझे इस प्रकाश स्तम्भ कोई भी सिरा दिखाई नहीं दे रहा हैं|  तब विष्णु जी एवं ब्रह्मा जी को अपनी गलती का एहसास होता हैं|  वे अपनी भूल पर शिव से क्षमा मांगते हैं| 

हर तीज- त्यौहार हमेंकुछ सीखने, हमारे में नया कुछ सीखने की लालसा खड़ी करने, एवं श्रद्धा वह भक्ति से सुखमय जीवन बिताने की सलाह देते हैं| 

महाशिवरात्रि की कथा Mahashivratri Ki Katha 

हिंदू धर्म के पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा ने अपने मन से १० पुत्रों को जन्म दिया जिन्हें मानसपुत्र कहा जाता है। भागवत पुराण के अनुसार ये मानसपुत्र के नाम – अत्रि, अंगिरस, पुलस्त्य, मरीचि, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष, और नारद हैं। इन ऋषियों को प्रजापति भी कहते हैं।

मत्स्य पुराण के अनुसार, दक्ष, धर्म, कामदेव और अग्नि क्रमशः ब्रह्मा के दाहिने अंगूठे, छाती, हृदय और भौंहों से पैदा हुए थे। भागवत पुराण सहित कई ग्रंथों के अनुसार, दक्ष का जन्म दो बार हुआ है – पहले ब्रह्मा के मानसपुत्र (मन से निर्मित पुत्र) के रूप में और बाद में, प्रचेतस और मारिशा के पुत्र के रूप में।

जब दक्ष प्रजापति का राजा बना, सृष्टि का संचालक बना उस समय अहंकार युक्त हो गया | भगवान शिव नेब्रह्मा जी के चार सर में से एक सर काट दिया था |इसी कारण ब्रह्मा जी तीन सर वाले हो गए थे | इसी कारण प्रजापति दक्ष भगवान शिव से भयंकर घृणा करते थेपरंतु | 

परंतु जन्म जन्म की तपस्या से उसने माता आदि शक्ति को प्रसन्न कर अपनी बेटी  सती के रूप में पा लिया था |

माता आदिशक्ति ने प्रजापति दक्ष और माता प्रस्सूती के घर माता सती के रूप में जन्म लिया| उन्होंने बचपन से ही कई सारे अलौकिक कार्य किए थे | जिस वजह से प्रजापति दक्ष उनके विवाह के लिए चिंतित हुआ करते थे | जिस समय माता सती विवाह योग्य हो गई उस समय प्रजापति दक्ष ने अपने पिता ब्रह्मा जी से सती के लिए योग्य वर संबंधी वार्तालाप किया | उस समय ब्रह्मा जी ने प्रजापति दक्ष से कहा, माता सती आदिशक्ति का अवतार होने की वजह से उनके लिए योग्यवर शिव ही है |

पिता की सलाह मान , प्रजापति दक्ष ने माता सती विवाह शिव से कर दिया, एवं माता सती कैलाश जाकर शिव के साथ रहने लगे | 

परंतु समय के चलते ससुर -दामाद के बीच के संबंध खराब हो गए | प्रजापति दक्ष के मन में भगवान शिव के प्रति बैरभाव और विरोध भाव उत्पन्न हुआ |

एक बार देवलोक में ब्रह्मा ने धर्म के निरूपण के लिए एक सभा का आयोजन किया था। सभी बड़े-बड़े देवता सभा में इकट्ठे हो गए थे। भगवान शिव भी इस सभा में विराजमान थे। सभा में दक्ष का प्रवेश हुआ। दक्ष के प्रवेश पर सभी देवता उठकर खड़े हो गए, पर भगवान शिव ने खड़े नहीं हुए |  इससे दक्ष को अपमान का एहसास हुआ। न केवल इससे, उनके ह्रदय में भगवान शिव के प्रति ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हुई। उन्होंने उसके प्रति प्रतिशोध की आग में जलने लगे। उन्होंने प्रतिशोध लेने के लिए समय और अवसर की प्रतीक्षा करने लगे।

एक बार सती और शिव कैलाश पर्वत पर बैठे हुए वार्तालाप कर रहे थे। उस समय आकाश में कई विमान दिखाई दिए, जो यज्ञ के लिए जा रहे थे। सती ने शिव से पूछा, “ये विमान किसके हैं और कहाँ जा रहे हैं?” शिव ने जवाब दिया, “तुम्हारे पिता ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया है। सभी देवता उसमें भाग लेने के लिए जा रहे हैं।”

सती ने पूछा, “क्या मुझे भी बुलाया गया है?” 

शिव ने उत्तर दिया, “नहीं, तुम्हारे पिता मुझसे नफरत करते हैं, तो वह तुम्हें क्यों बुलाएंगे?” 

सती ने कहा, “मेरी सभी बहनें जा रही हैं। मैं भी जाना चाहती हूं।”

शिव ने कहा, “यहाँ जाना उचित नहीं है। तुम्हारे पिता मुझसे नफरत कर सकते हैं, और वे तुम्हारा अपमान कर सकते हैं।”

सती ने कहा, “मुझे जाना है।”

शिव ने उन्हें अनुमति दी और उनके साथ वीरभद्र को भेजा। वे अपने पिता के घर गईं।

घर में सतीसे किसी ने प्रेमपूर्वक वार्तालाप नहीं किया। दक्ष ने उन्हें देखकर कहा, “तुम क्या यहां मेरा अपमान कराने आई हो? देखो तुम्हारी बहनें कितने सुंदर और शानदार वस्त्रों में हैं। और तुम्हारे शरीर पर केवल बाघंबर हैं। तुम्हारा पति शिव तो श्मशानवासी हैं, उसे क्या पता अच्छे कपड़े क्या होते हैं।”

सती ने दक्ष के शब्दों से पश्चाताप किया। वह सोचने लगी कि उसने गलती की है। भगवान शिव ने सही कहा था, बिना बुलाए पिता के घर भी नहीं जाना चाहिए। लेकिन अब क्या हो सकता है? वह वहाँ आ पहुंची है।

सती ने उसके कठोर और अपमानजनक शब्दों के बाद भी मौन रही। वह यज्ञ के मंडप में गई, जहाँ सभी देवता और ऋषिमुनि बैठे थे और यज्ञ की अहुतियाँ डाली जा रही थीं। सती ने देवताओं को देखा, लेकिन भगवान शिव को नहीं देखा। उसने पिता से कहा, “पितृश्रेष्ठ, यज्ञ में सभी के भोग दिख रहे हैं, लेकिन कैलाशपति का भोग नहीं है। आपने उनका भोग क्यों नहीं रखा?”

दक्ष ने गर्व से उत्तर दिया, “मैं तुम्हारे पति शिव को देवता नहीं समझता। वह तो भूतों का स्वामी है, नग्न रहने वाला और हड्डियों की माला धारण करने वाला है। वह देवताओं की पंक्ति में बैठने योग्य नहीं है। उसे कौन भोग देगा?”

सती के आंसू बहने लगे। उनका मुखमंडल प्रलय के सूर्य की भांति तेजोद्दीप्त हो गया। उन्होंने कहा, “मुझे धिक्कार है। तुम भी उन कैलाशपति के लिए धिक्कार हो।”

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“मैं अब एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहती।” सती ने अपनी यात्रा को समाप्त किया और यज्ञ के कुंड में कूद पड़ी। उसका शरीर भी जलने लगा। यज्ञमंडप में हलचल मच गई। देवता उठकर खड़े हो गए।

वीरभद्र ने क्रोध से कांपते हुए यज्ञ को बिगाड़ने का प्रयास किया। यज्ञमंडप में हलचल मच गई। देवता और ॠषिमुनि भाग खड़े हुए। वीरभद्र ने देखते ही देखते दक्ष का सिर काट दिया।

भगवान शिव यज्ञ स्थल पर पहुंचकर माता सती के जले हुए शरीर को अपने कंधे पर रख लिया। वे धरती पर विचरण करने लगे, उनका मन भयंकर व्याकुल हो गया। उनकी बेसुध भावना ने सृष्टि को प्रभावित किया। धरती रुक गई, हवा रुक गई, जल का प्रवाह ठहर गया, और देवताओं की सांसें रुक गईं। भगवान विष्णु ने स्थिति को संतुलित किया।

भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती केशरीर को कई टुकड़ों में बांट दिया| जिससेभगवान शिव पुणे चेतनायुक्त हो गए और सृष्टि भी कार्यरत हो गई |

माता सती के शरीर के 51 टुकड़े हो गए | माता सती के शरीर के जहां-जहां अंग गिरे   , वहां-वहां शक्ति के पीठ स्थान बने। आज भी यह 51 शक्तिपीठ में माता सती का पूजन होता है, उनकी उपासना होती है।

भगवान शिव ने सती के शरीर को भस्म होने के बाद फाल्गुन माह के चतुर्दशी को तांडव किया था इसलिए यह दिन महाशिवरात्रि कहलाता है | 

(पहली बार नृत्य कला का क्रोध के रूप में अविष्करण हुआ था ) 

उसके बाद माता आदिशक्ति ने हिमालय नरेश के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया | बचपन से ही अलौकिक ऐसी माता पार्वती नेअपनी कई लीलाओं से सब काम मन मोह लिया | शिवलिंग की स्थापना कर उन्होंने वर्षों तक शिव आराधना की | भगवान शिव के प्रसन्न होने पर उन्होंने पुनःशिव को पा लिया | 

भगवान शिव के साथ फाल्गुन माह के चतुर्दशी को माता पार्वती का विवाह हुआ विवाह किया | आता है यह दिनशिव और शक्ति केमिलन के रूप में मनाया जाता है | इसीलिए महाशिवरात्रि का त्यौहार शिव और शक्ति के मिलन का त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है |

                                                                                                                                                                                  शिव रात्रि के व्रत से मनुष्य का अहंकार खत्म होता हैं| मनुष्य में सभी दैनिक उपयोगया व्यवहार में आने वाले भौतिक पदार्थ के प्रति समान भाव जागता हैं| मन के भाव के कारण ही मनुष्य कई तरह के विकारों से दूर होता हैं|

Mahashivratri

बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम Barah Jyotirling Ke Naam

देश भर के छोटे बड़े सभी मंदिरों में महाशिवरात्रि की पूजा की जाती है|  परंतु इस सब में अधिक महत्वभगवान शिव के सर्वश्रेष्ठ12 ज्योतिर्लिंगों को दिया जाता है| कई श्रद्धालु महाशिवरात्रि पर अपने इष्ट देव के करीब रहना चाहतेइसी कारण वह 12 ज्योतिर्लिंग में से किसी एक ज्योतिर्लिंग पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं | माना जाता है महाशिवरात्रि पर भगवान शिव स्वयंभूलोक पर उपस्थित रहते हैं | Mahashivratri

12 Jyotirling Video

  1. सौराष्ट्र में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (गुजरात)
  2. श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
  3. उज्जैन मध्य प्रदेश मे महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
  4. मध्य प्रदेश खंडवा में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
  5. परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्रा)
  6. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
  7. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
  8. त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्रा)
  9. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
  10. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
  11. विशेश्वर ज्योतिर्लिंग
  12. घ्रिश्नेश्वर ज्योतिर्लिंग

श्री शिवाय नमस्तुभ्यं Mahashivratri

धन्यवाद

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