Shiv Chalisa
महामृत्युंजय मंत्र Mahamrityunjay Mantra in Hindi
ॐ जूं सः भूर्भुवः स्वः
ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बंधनात् मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्
भूर्भुवः स्वः रों जूं सः हौं ॐ ।
शिव चालीसा पूजन विधि Shiv Chalisa Pujan Vidhi In Hindi
- सूर्योदय से पूर्व स्नान कर श्वेत वस्त्र धारण करें.
- आसन पर बैठ जाइए
- भगवान शंकर की मूर्ति या चित्र तथा शिव यंत्र को सामने रखें
- फिर चंदन, चावल, सफेद पुष्प, धूप, दीप, धतूरा का फल, बेलपत्र तथा काली मिर्च आदि से पूजन करें
- शिव जी का ध्यान करते हुए नीचे दिया हुआ मंत्र पढ़कर पुष्प समर्पित करें.
“कर्पूर गौरं करुणावतारं, संसार सारं भुजगेंद्रहारम् |
सदा वसंतं हृदयारविंदे, भवं भवानी सहितं नमामि ||
- इसके बाद पुष्प अर्पण करके चालीसा का पाठ करें
- पाठ के अंत में “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का तुलसी या सफेद चंदन की माला से 108 बार जप करें.
- जप करने से कार्य सिद्धि जल्दी होती है.
श्री शिव चालीसा Shiv Chalisa Lyrics In Hindi
|| दोहा ||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान |
कहत अयोध्या दास तुम, देउ अभय वरदान ||
|| चौपाई ||
जय गिरिजापति दीनदयाला ||
सदा करत संतन प्रतिपाला || 1||
भाल चंद्रमा सोहत नीके |
कानन कुंडल नागफनी के ||2||
अंग गौर सिर गंग बहाए |
मुंण्डमाल तन क्षार लगाए ||3||
वस्त्र खाल बाघंबर सोहै |
छवि को देखि नाग मुनि मोहै ||4||
मैना मातू की हवै दुलारी |
वाम अंग सोहत छवि न्यारी || 5 ||
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी |
करत सदा शत्रुन क्षयकारी || 6 ||
नंदी गणेश सोहैं तहं कैसे |
सागर मध्य कमल हैं जैसे || 7 ||
कार्तिक श्याम और गणराऊ |
या छवि को कहीं जात न काऊ || 8 ||
देवन जबही जाय पुकारा |
तबाही दु :ख प्रभु आप निवारा || 9 ||
कियो उपद्रव तारक भारी |
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी || 10 ||
तूरत षडानन आप पठायऊ |
लव निमेष महं मारि गिरायउ || 11 ||
आप जलंधर असुर संहारा |
सुयश तुम्हार विदित संसारा || 12 ||
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई |
सबहिं कृपा करी लीन बचाई || 13 ||
किया तपहिं भागीरथ भारी |
पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी || 14 ||
दानिन महं तुम सम कोइ नाहीं |
सेवक स्तुति करत सदाहीं ||15 ||
वेद माही महिमा तब गाई |
अकथ अनादि भेद नहीं पाई ||17 ||
प्रकटी उदधि मथन ते ज्वाला |
जरत सुरासुर भए विहाला || 18 ||
कीन्ह दया तहं करी सहाई |
नीलकंठ तव नाम कहाई || 19 ||
पूजन रामचंद्र जब किन्हा |
जीत के लंक विभीषण दीन्हा || 20 ||
सहस कमल में हो रहे धारी |
किन्ह परीक्षा तबाहीं पुरारी || 21 ||
एक कमल प्रभु राखेउ गोई |
कमल नैन पूजन चहं सोई || 22 ||
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर |
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर || 23 ||
जय जय जय अनंत अविनासी |
करत कृपा सबके घटवासी || 24 ||
दुष्ट सकल नीत मोहि सतावैं |
भ्रमत राहौं मोहि चैन न आवैं || 25 ||
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारौं |
यही अवसर मोहि आन उबारौं || 26 ||
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो |
संकट ते मोही आन उबारो || 27 ||
मात- पिता भ्राता सब होई |
संकट में पूछत नहीं कोई || 28 ||
स्वामी एक है आस तुम्हारी |
आय हरहु मम संकट भारी || 29 ||
धन निर्धन को देत सदाही |
जो कोइ जांचें सो फल पाहीं || 30 ||
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी |
क्षमहु नाथ अब चुक हमारी || 31 ||
शंकर को संकट के नाशन |
विघ्न विनाशन मंगल कारन || 32 ||
योगी यति मुनि ध्यान लगावें |
नारद सारद शीश नवावें || 33 ||
नमो नमो जय नमः शिवाय |
सूर ब्रह्मादिक पार न पाय || 34 ||
जो यह पाठ करें मन लाई |
ता पर होत है शंभू सहाई || 35 ||
ऋनियां जो कोइ हो अधिकारी |
पाठ करें सो पावनहारी || 36 ||
पुत्र होन कर इच्छा कोई |
निश्चय शिव प्रसाद तेही होई || 37 ||
पण्डित त्रयोदशी को लावैं |
ध्यान पूर्वक होम करावैं || 38 ||
त्रयोदशी व्रत करैं हमेशा |
तन नहीं ताके रहै कलेशा || 39 ||
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावैं |
शंकर सम्मुख पाठ सुनावैं || 40 ||
जन्म जन्म के पाप नसावै |
अंत धाम शिवपुर में पावै || 41 ||
कहत अयोध्या आस तुम्हारी |
जानि सकल दु:ख हरहूं हमारी || 42 ||
नित्य नेम कर प्रात ही, पाठ करो चालिस |
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीस || 43 ||
मंगसर छठी हेमंत ऋतु,संवत् चौसठ जान |
अस्तुति चालीसा शिवही, पूर्ण किन कल्याण || 44 ||
|| श्री शिवाय नमस्तुभ्यं ||
शिव चालीसा का अर्थ Shiv Chalisa With Meaning In Hindi
|| दोहा ||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान |
कहत अयोध्या दास तुम, देउ अभय वरदान ||
अर्थ
समस्त मंगल के ज्ञाता गिरिजा सुत श्री गणेश की जय हो | मैं अयोध्या दास आपसे अभय होने का वर मांगता हूं |
|| चौपाई ||
जय गिरिजापति दीनदयाला ||
सदा करत संतन प्रतिपाला || 1||
अर्थ
दिनों पर दया करने वाले तथा संतो की रक्षा करने वाले, पार्वती के पति शंकर भगवान की जय हो |
भाल चंद्रमा सोहत नीके |
कानन कुंडल नागफनी के ||2||
अर्थ
जिनके मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है और जिन्होंने कानों में नागफनी के कुंडल धारण किए हुए हैं |
अंग गौर सिर गंग बहाए |
मुंण्डमाल तन क्षार लगाए ||3||
अर्थ
जिनके अंग गौरवर्ण है, सिर से गंगा बह रही है, गले में मुंण्डमाला है और शरीर पर भस्म लगी हुई है
वस्त्र खाल बाघंबर सोहै |
छवि को देखि नाग मुनि मोहै ||4||
अर्थ
जिन्होंने बाघंबर धारण किया हुआ है, ऐसे शिव की शोभा देखकर नाग और मुनि भी मोहित हो जाते हैं |
मैना मातू की हवै दुलारी |
वाम अंग सोहत छवि न्यारी || 5 ||
अर्थ
महारानी मैना की दुलारी पुत्री पार्वती उनके वाम भाग में सुशोभित हो रही है |
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी |
करत सदा शत्रुन क्षयकारी || 6 ||
अर्थ
जिनके हाथ का त्रिशूल अत्यंत सुंदर प्रतीत हो रहा है, वही निरंतर शत्रुओं का विनाश करता रहता है |
नंदी गणेश सोहैं तहं कैसे |
सागर मध्य कमल हैं जैसे || 7 ||
अर्थ
भगवान शंकर के समीप नंदी वह गणेश जी ऐसे सुंदर लगते हैं, जैसे सागर के मध्य कमल |
कार्तिक श्याम और गणराऊ |
या छवि को कहीं जात न काऊ || 8 ||
अर्थ
श्याम, कार्तिकेय और उनके करोड़ों गणों की छवि का बखान करना किसी के लिए भी संभव नहीं है |
देवन जबही जाय पुकारा |
तबाही दु :ख प्रभु आप निवारा || 9 ||
अर्थ
हे प्रभु ! जब जब भी देवताओं ने पुकार की, तब तब आपने उनके दुखों का निवारण किया है |
कियो उपद्रव तारक भारी |
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी || 10 ||
अर्थ
जब तारकासुर ने उत्पात किया, तब सब देवताओं ने मिलकर रक्षा करने के लिए आपकी गुहार की |
तूरत षडानन आप पठायऊ |
लव निमेष महं मारि गिरायउ || 11 ||
अर्थ
तब आपने तुरंत स्वामी कार्तिकेय को भेजा, जिन्होंने क्षण मात्र में ही तारकासुर राक्षस को मार गिराया |
आप जलंधर असुर संहारा |
सुयश तुम्हार विदित संसारा || 12 ||
अर्थ
आपने स्वयं जलंधर का सहार किया, जिससे आपके यश तथा बल को सारा संसार जानता है |
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई |
सबहिं कृपा करी लीन बचाई || 13 ||
अर्थ
त्रिपुर नामक असुर से युद्ध कर आपने देवताओं पर कृपा की, उन सभी को आपने बचा लिया |
किया तपहिं भागीरथ भारी |
पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी || 14 ||
अर्थ
आपने अपनी जटाओं से गंगा की धारा को छोड़कर भागीरथ के तप की प्रतिज्ञा को पूरा किया था |
दानिन महं तुम सम कोइ नाहीं |
सेवक स्तुति करत सदाहीं ||15 ||
अर्थ
संसार के सभी दानियों मैं आपके समान कोई दानी नहीं है | भक्त सदा ही वंदना करते रहते है |
वेद माही महिमा तब गाई |
अकथ अनादि भेद नहीं पाई ||17 ||
अर्थ
आपके अनादि होने का वेद कोई बता नहीं सका | वेदों में भी आपके नाम की महिमा गाई गई है |
प्रकटी उदधि मथन ते ज्वाला |
जरत सुरासुर भए विहाला || 18 ||
अर्थ
समुद्र मंथन करने से जब विष उत्पन्न हुआ , तब देवता और राक्षस दोनों ही बेहाल हो गए |
कीन्ह दया तहं करी सहाई |
नीलकंठ तव नाम कहाई || 19 ||
अर्थ
तब आपने दया करके उनकी सहायता की और ज्वाला पान किया | तभी से आपका नाम नीलकंठ पड़ा |
पूजन रामचंद्र जब किन्हा |
जीत के लंक विभीषण दीन्हा || 20 ||
अर्थ
रामचंद्र जी ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले आपका पूजन किया और विजय लंका विभीषण को दे दी |
सहस कमल में हो रहे धारी |
किन्ह परीक्षा तबाहीं पुरारी || 21 ||
अर्थ
भगवान रामचंद्र ने जब सहस्त्र कमल के द्वारा पूजन किया तो आपने फूलों में विराजमान हो परीक्षा ली |
एक कमल प्रभु राखेउ गोई |
कमल नैन पूजन चहं सोई || 22 ||
अर्थ
आपने एक कमल पुष्प माया से लुप्त कर दिया | तो श्रीराम ने अपने कमलनयन असे पूजन करना चाहा |
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर |
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर || 23 ||
अर्थ
जब आपने राघवेंद्र की इस प्रकार की कठोर भक्ति देखी तो प्रसन्न होकर उन्हें मनवांछित वर प्रदान किया |
जय जय जय अनंत अविनासी |
करत कृपा सबके घटवासी || 24 ||
अर्थ
अनंत और अविनाशी शिव की जय हो, सबके हृदय मैं निवास करने वाले आप सब पर कृपा करते हो |
दुष्ट सकल नीत मोहि सतावैं |
भ्रमत राहौं मोहि चैन न आवैं || 25 ||
अर्थ
हे शंकर जी! अनेक दुष्ट मुझे प्रतिदिन सताते हैं | जिसमें मैं भ्रमित हो जाता हूं और मुझे चैन नहीं मिलता |
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारौं |
यही अवसर मोहि आन उबारौं || 26 ||
अर्थ
हे नाथ! इन सांसारिक बाधाओं से दुखी होकर मैं आपका स्मरण करता हूं | आप मेरा उद्धार कीजिए |
ले त्रिशूल शत्रुन को मारो |
संकट ते मोही आन उबारो || 27 ||
अर्थ
आप अपने त्रिशूल से मेरे शत्रु को नष्ट कर, मुझे इस संकट से बचाकर भवसागर से उबार लीजिए |
मात- पिता भ्राता सब होई |
संकट में पूछत नहीं कोई || 28 ||
अर्थ
माता पिता और भाई आदि सुख में ही साथी होते हैं, संकट आने पर कोई पूछता भी नहीं |
स्वामी एक है आस तुम्हारी |
आय हरहु मम संकट भारी || 29 ||
अर्थ
हे जगत के स्वामी ! आप पर ही मेरी आशा टिकी है, आप मेरे इस घोर संकट को दूर कीजिए |
धन निर्धन को देत सदाही |
जो कोइ जांचें सो फल पाहीं || 30 ||
अर्थ
आप सदा ही निर्धनों की सहायता करते हैं | जिसने भी आपको जैसा जाना उसने वैसा ही फल प्राप्त किया |
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी |
क्षमहु नाथ अब चुक हमारी || 31 ||
अर्थ
मैं प्रार्थना- स्तुतिकरने की विधि नहीं जानता | इसीलिए कैसे करूं? मेरी सभी भूलों को क्षमा करें |
शंकर को संकट के नाशन |
विघ्न विनाशन मंगल कारन || 32 ||
अर्थ
आप ही संकट का नाश करने वाले, समस्त शुभ कार्यों को कराने वाले और विघ्नहर्ता है |
योगी यति मुनि ध्यान लगावें |
नारद सारद शीश नवावें || 33 ||
अर्थ
योगीजन, यति व मुनिजन आपका ही ध्यान करते हैं | नारद और सरस्वती जी आपको ही शीश नवाते हैं |
नमो नमो जय नमः शिवाय |
सूर ब्रह्मादिक पार न पाय || 34 ||
अर्थ
“ॐ नमः शिवाय” पंचाक्षर मंत्र का निरंतर जप करके भी देवताओं ने आपका पार नहीं पाया |
जो यह पाठ करें मन लाई |
ता पर होत है शंभू सहाई || 35 ||
अर्थ
जो इस शिव चालीसा का निष्ठा से पाठ करता है, भगवान शंकर उसकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं |
ऋनियां जो कोइ हो अधिकारी |
पाठ करें सो पावनहारी || 36 ||
अर्थ
यदि ऋणी (कर्जदार) इसका पाठ करें तो वह ऋणमुक्त हो जाता है |
पुत्र होन कर इच्छा कोई |
निश्चय शिव प्रसाद तेही होई || 37 ||
अर्थ
पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो इसका पाठ करेगा, निश्चय ही शिव की कृपा से उसे पुत्र प्राप्त होगा |
पण्डित त्रयोदशी को लावैं |
ध्यान पूर्वक होम करावैं || 38 ||
अर्थ
प्रत्येक मास की त्रयोदशी को घर पर पंडित को बुलाकर श्रद्धा पूर्वक पूजन व हवन करना चाहिए |
त्रयोदशी व्रत करैं हमेशा |
तन नहीं ताके रहै कलेशा || 39 ||
अर्थ
त्रयोदशी का व्रत करने वाले व्यक्ति के शरीर और मन को भी कोई क्लेश (दु:ख) नहीं रहता |
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावैं |
शंकर सम्मुख पाठ सुनावैं || 40 ||
अर्थ
धूप, दीप और नैवेद्य से शिव पूजन करके शंकर जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर यह पाठ करना चाहिए |
जन्म जन्म के पाप नसावै |
अंत धाम शिवपुर में पावै || 41 ||
अर्थ
इससे समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में शिवलोक में वास होता है | अर्थात मुक्ति हो जाती है |
कहत अयोध्या आस तुम्हारी |
जानि सकल दु:ख हरहूं हमारी || 42 ||
अर्थ
अयोध्या दास कहते हैं, है शंकर जी! हमें आपके ही आशा है, यह जानते हुए मेरे समस्त दुखों को दूर कीजिए |
नित्य नेम कर प्रात ही, पाठ करो चालिस |
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीस || 43 ||
अर्थ
इस शिव चालीसा का प्रतिदिन पाठ करने से भगवान मनोकामना पूर्ण करेंगे |
मंगसर छठी हेमंत ऋतु,संवत् चौसठ जान |
अस्तुति चालीसा शिवही, पूर्ण किन कल्याण || 44 ||
अर्थ
हेमंत ऋतु, मार्गशीर्ष मास की छठी तिथि संवत 64 मैं यह चालीसा लोक कल्याण के लिए पूर्ण हुई |
|| श्री शिवाय नमस्तुभ्यं ||
धन्यवाद
Clearly explain
very nicely explained the meaning ???? om namah shivaya ????