शिव Shiv
- शिव भगवान हिन्दू धर्म में त्रिमूर्ति का एक हिस्सा हैं, जिन्हें देवता त्रय भी कहा जाता हैं। त्रय का अर्थ त्रिदेव भी होता है | (ब्रह्मा, विष्णु, और शिव)।
- शिव को महादेव, नीलकंठ, भैरव, रुद्र, इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
- शिव की त्रिशूल, डमरू, गंगा जल, सर्प, और त्रिपुण्ड्र चिन्ह उनकी पहचानी जाती हैं।
- उनके वाहन का नाम नंदी है, जो एक बैल (बुल्ल) का प्रतीक है और उनकी विशेष भक्ति में उपयोग होता है। माना जाता है की , शिव को मनाने के लिए प्रथम निवेदन नंदी से करना पड़ता है |
- शिव की उपासना से मुक्ति, शांति, और आत्मा का प्रकाश प्राप्त होता है।
त्रिशूल Trishul
- शिव का त्रिशूल उनकी कमरबंद में लटका होता है और यह तीन शक्ति को प्रतिस्थापित करता है।
- त्रिशूल का तीनों प्राण (उत्पत्ति, स्थिति, और संहार) को सूचित करता है और इसका प्रयोग अनुष्ठान, शान्ति, और सुरक्षा के लिए किया जाता है।
डमरू Damru
- डमरू शिव का एक वाद्य यंत्र है, जिसकी ध्वनि का कहा जाता है कि यह ब्रह्मांड की सृष्टि और प्रलय का प्रतीक है।
- डमरू के ध्वनि का कहा जाता है कि यह सभी वास्तुओं के बीच का अंतर्वाहिनी ध्वनि है, जो ब्रह्मांड के सृष्टिकर्ता की उत्पत्ति का कारण है।
गंगा जल Ganga Jal
- गंगा जल को शिव का आद्यात्मिक और पवित्र पानी माना जाता है, जो भक्तों को उनके पापों की क्षमता प्रदान करता है।
- शिव ने गंगा को अपने जटा में धारण किया था, जो उसकी शिरोमध्य बाल नामक अप्रत्याशित स्थान का उपयोग करता है।
- गंगा जल की शक्ति और पावनता भक्तों को प्राप्त होती है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होती है।
शिव के वाहन नंदी Shiv Ke Wahan Nandi
- शिव और उनके वाहन नंदी का अपना विशेष महत्व है।
- नंदी गौ माता के पुत्र होते हैं और शिव भगवान के वाहन के रूप में प्रसिद्ध हैं।
- नंदी को एक संजीवी पशु के रूप में भी जाना जाता है, जो शिव के प्रिय वाहन के रूप में उनके साथ रहता है।
- नंदी को समर्पित और विश्वासी भक्त माना जाता है, और उनकी पूजा शिव भगवान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करती है।
- इसके अलावा, नंदी को ध्यान में लेकर ध्यान और तपस्या करने में भी मदद मिलती है।
महाकाल Mahakal
- शिव को ‘महाकाल’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है ‘बड़ा समय’। वह सभी कालों के स्वामी हैं और समस्त सृष्टि के संहार का कारण भी हैं।
- महाकाल की पूजा से समय की अद्वितीयता और मानव जीवन के प्रत्येक क्षण के महत्व का अनुभव होता है।
- शिव को महाकाल के रूप में पूजने से भक्तों को अद्वितीय और शांतिपूर्ण चैतन्यता का अनुभव होता है।
शिव के तपस्या और ध्यान का महत्व Importance Of Shiv Ka Dhyan
- शिव की उपासना में ध्यान का विशेष महत्व होता है। उनकी ध्यान से भक्त अपने मन को शांत करते हैं और आत्मा के साथ एकता महसूस करते हैं।
- ध्यान करने से भक्तों की अंतरात्मा की ऊर्जा को शिव के प्रकाशित रूप में महसूस होता है, जो उन्हें आत्मा की अद्वितीयता का अनुभव कराता है।
शिव का अर्धनारीश्वर स्वरूप Shiv Ka Ardnareshwar Swaroop
- शिव को ‘अर्धनारीश्वर’ के रूप में भी पूजा जाता है, जो शिव और पार्वती का एक साथ होने का प्रतीक है।
- यह संयोग शक्ति और पुरुष का प्रतीक है, जो समस्त ब्रह्मांड का उत्पत्ति, संरक्षण, और संहार करते हैं।
- अर्धनारीश्वर की पूजा से भक्तों को समस्त द्वंद्वों के पार एकता और संपूर्णता का अनुभव होता है।
शिवरात्रि Shiv Ratri
- शिवरात्रि शिव की अत्यंत महत्वपूर्ण पूजा का दिन है, जो साल में एक बार मनाया जाता है।
- इस दिन भक्तों ने व्रत रखा जाता है और शिव मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं।
- शिवरात्रि की रात्रि को जागरण के साथ बिताया जाता है और शिव की महिमा गाई जाती है।
- इस दिन की पूजा से भक्तों को मन की शुद्धि, आत्मा की उन्नति, और ध्यान में स्थिरता का अनुभव होता है।
शिव की अद्वितीय महिमा Shiv Unique Glory
आदिदेव शिव Aadidev Shiv
धरती पर जीवन शुरू करने वाले सर्वप्रथम भगवान शिव ही है | धरती पर पहला कदम भगवान शिव का पड़ा था इस कारण उनका नाम “आदिदेव” भी है | अपने भक्त की सही गलत हर इच्छाओं को पूरा करते हुए आसानी से प्रसन्न होकर वरदान देते हैं | इस कारण वह भोलेनाथ भी कहलाते हैं | वह सृष्टि, स्थिति,और संहार के देवता हैं और उन्हें आदियोगी भी कहा जाता है, जो अनादि, अनंत, और अव्यक्त हैं।
शिव के अस्त्र-शस्त्र Shiv Ke Astra-Shastra
भगवान शिव के पास
- धनुष बाण : पिनाक
- चक्र: भवरेंदु और सुदर्शन है |
- अस्त्र: पाशुपतास्त्र
- शस्त्र: त्रिशूल है |
इन सभी के रचयिता भी भगवान शिव ही है |
भगवान शिव अपने साथ केवल त्रिशूल रखते हैं | उपरोक्त सभी अस्त्र-शस्त्र से बढ़कर भगवान शिव की तीसरी आंखेंपूरे सृष्टि का विनाश करने के लिए पर्याप्त है |
भगवान शिव का नाग Bhagwan Shiv Ka Naag
भगवान शिव अपने गले में हार के रूप में नाग धारण करते हैं | यह नागऔर कोई नहीं बल्कि नागराज वासुकी स्वयं है |
विशेषज्ञों का मानना है कि शिव की गर्दन पर सांप का आवास, जो जन्म और पुनर्जन्म के अनंत चक्र का प्रतिनिधित्व करता है। एक और प्रतीक है कि गर्दन पर सांप अहंकार को दर्शाता है जिसे एक बार नियंत्रित करने के बाद वह आभूषण के रूप में पहना जा सकता है। एक और महत्वपूर्ण बिंदु है कि जब भगवान शिव कैलास में रहते हैं, तो उन्हें सांपों के साथ चित्रित किया जाता है।
शिव की अर्द्धांगिनी Wife Of Lord Shiv
शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि कही गई हैं।
माता सती के और माता पार्वती के भगवान शिव के साथ विवाह की संपूर्ण कथा – महाशिवरात्रि
शिव के पुत्र Sons Of Lord Shiv
शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं-
- गणेश,
- कार्तिकेय,
- सुकेश,
- जलंधर,
- अयप्पा
- भूमा
सभी के जन्म की कथा रोचक है।
शिव के शिष्य Shiv Ke Shishya
- शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है।
- इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई।
- शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी।
- शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
शिव के गण Shiv Ke Gan
शिव के गणों में
- भैरव,
- वीरभद्र,
- मणिभद्र,
- चंदिस,
- नंदी,
- श्रृंगी,
- भृगिरिटी,
- शैल,
- गोकर्ण,
- घंटाकर्ण,
- जय और
- विजय प्रमुख हैं।
इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।
शिव पंचायत Shiv Panchayat
जब भी देवताओं और दैत्यों के बीच कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता, तो शिव की पंचायत का फैसला सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता था। भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
शिव के द्वारपाल Shiv Ke Dwarpal
भगवान शंकर के मुख्य द्वारपाल नंदी हे , लेकिन इसके अलावा स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल को भी उनके द्वारकारों का रक्षक माना जाता है |
शिव पार्षद Shiv Parshad
जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
सभी धर्मों का केंद्र शिव Shiva The Center Of All Religions
शिव की वेशभूषा ऐसी है कि हर धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक खोज सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबीईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो बाद में शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में विभाजित हो गई।
बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय Buddhist Literature Shiv
ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।
देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव Shiv – The Lord Of Dev And Asur
भगवान शिव को देवों के साथ
- असुर
- दानव
- राक्षस
- पिशाच
- गंधर्व
- यक्ष आदि
सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
शिव चिह्न Shiv Chinn
रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का प्रतीक माना जाता है। कुछ लोग डमरू और अर्ध चंद्रमा को भी शिव के प्रतीक के रूप में मानते हैं, हालांकि अधिकांश लोग शिवलिंग, यानी शिव की प्रकाश की पूजा करते हैं।
शिव की गुफा Cave Of Lord Shiv
- जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकुटपर्वत की पहाड़ियों में एक गुफा है| यह गुफा स्वयं भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से बनाई थी | भस्मासुर से बचने के लिए वह इसी की गुफा में छुप गए थे |
- दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा ‘अमरनाथ गुफा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
धरती पर साक्षात शिव के पद चिन्ह Footprints of Shiv on earth
- श्रीपद– श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।
- रुद्र पद– तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे ‘रुद्र पदम’ कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं |
- तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।
- जागेश्वर– उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।
- रांची– झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर ‘रांची हिल’ पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को ‘पहाड़ी बाबा मंदिर’ कहा जाता है।
शिव के अवतार Avatar Of Lord Shiv
वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं।
वेदों में रुद्रों का जिक्र है।
11 रुद्र
- कपाली
- पिंगल
- भीम
- विरुपाक्ष
- विलोहित
- शास्ता
- अजपाद
- आपिर्बुध्य
- शंभू
- चण्ड
- भव
शिव का परिवार Family Of Lord Shiv
- शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं।
- इधर गणपति जी का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है।
- माता पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है।
इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।
विचारों में विभिन्नता होने के बावजूद भी अगर मन मिल जाते हैं, तोसंयुक्त परिवार में वैचारिक विभिन्नता होने के बावजूद भी प्रेम भाव हो सकता है|
यही सीख हमें शिव परिवार देता है |
निवास स्थान – त्रिमूर्ति Abode Of Trimurti
तिब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है, जहाँ शिव विराजमान हैं। उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है।
शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार, स्वर्ग लोक, ब्रह्माजी का स्थान है। इस प्रकार, कैलाश पर्वत के प्रमुख स्थल पर तीनों देवों का संगम है, जो सृष्टि के त्रिमूर्ति कहलाते हैं।
शिव भक्त प्रभु श्री राम- श्री कृष्ण Shiv Bhakt, Shri Ram & Shri Krishn
हरिवंश पुराण के अनुसार, कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कैलास पर्वत पर तपस्या की थी और भगवान राम ने रामेश्वरम में एक शिवलिंग स्थापित किया था और उनकी पूजा-अर्चना की थी।
इस तरह, शिव भक्ति के माध्यम से ब्रह्मा, विष्णु, राम और कृष्ण जैसे देवी-देवताओं ने भी शिव की पूजा की और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
शिव ध्यान Shiv Dhyan
शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग खुल जाता है।
शिव मंत्र Shiv Mantra
दो ही शिव के मंत्र हैं ,
पंचाक्षरी मंत्र
- ॐ नम: शिवाय।
महामृत्युंजय मंत्र
- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥
शिव व्रत और त्योहार Shiv Vrat & Festivals
सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
शिव शिष्य Shiv Shishya
शिव प्रचारकों में भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया।
इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
शिव गुणगान Shiv Gungaan
- शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था।
- शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था।
- शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था।
- शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था।
- ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।
शैव धर्म भारत के आदिवासि Shaivism Tribal People Of India
- दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं।
- चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं।
- शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।
भगवान शिव के प्रमुख नाम Famous Names Of Lord Shiv
शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं, जिनमें पुराणों में 108 नामों का उल्लेख मिलता है, लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें
- महेश,
- नीलकंठ,
- शंकर,
- महादेव,
- महाकाल
- पशुपतिनाथ,
- गंगाधर
- त्रिनेत्र
- भोलेनाथ
- आदिदेव
- नटराज
- आदिनाथ
- त्रियंबक
- त्रिलोकेश
- जटाशंकर
- जगदीश
- प्रलयंकर
- विश्वनाथ
- विश्वेश्वर
- हर
- शिवशंभु
- भूतनाथ
- रुद्र
- शंभू
- शिव
अमरनाथ के अमृत वचन Amarnath
शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र‘ एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
शिव ग्रंथ Shiv Granth
वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाहित हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
शिवलिंग Shivling
वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुनः सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वास्तव में, यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
बारह ज्योतिर्लिंग और मान्यताएं 12 Jyotirlingas Of Lord Shiv
- सोमनाथ
- मल्लिकार्जुन
- महाकालेश्वर
- ॐकारेश्वर
- वैद्यनाथ
- भीमशंकर
- रामेश्वर
- नागेश्वर
- विश्वनाथजी
- त्र्यम्बकेश्वर
- केदारनाथ
- घृष्णेश्वर
ये सभी ज्योतिर्लिंगों के नाम हैं जिनकी उत्पत्ति के संबंध में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं।
ज्योतिर्लिंग का अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’ और यह शिवलिंग के बारह खंडों को दर्शाता है। शिवपुराण के अनुसार, इन बारह खंडों को ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करते हैं और इन्हें ‘ज्योतिर्लिंग’ या ‘ज्योति पिंड’ कहा जाता है।
दूसरी मान्यता के अनुसार, शिव पुराण के अनुसार प्राचीन काल में आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरा और इन्हें ‘उल्का पिंड’ कहा गया। भारत में गिरे अनेक पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
शिव के भक्ति Shiv Ke Bhakt
शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं, वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं। इसका कारण है कि शिव का दर्शन यह सिखाता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनाकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो।
आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
शिव और शंकर के बीच अंतर है The difference between Shiv & Shankar
शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस प्रकार कई लोग अनजाने में शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम मानते हैं। वास्तव में, दोनों की मूर्तियाँ अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में प्रस्तुत किया जाता है। कई स्थानों पर शंकर को शिवलिंग का रूप धारण करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग-अलग सत्ताएं हैं। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना जाता है।
महादेव देवों के देव क्यों कहलाते हैं? Why is Mahadev Known As Devon Ke Dev
देवताओं और दैत्यों के बीच स्थित संघर्ष हमेशा चला रहता था। जब कभी भी देवताओं को बड़ी मुश्किलें आती, तो वे सभी भगवान शिव के पास जाते थे। दैत्यों और राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार प्रतिस्पर्धा में चुनौती दी, लेकिन वे सभी हार गए और शिव के समक्ष झुक गए। इसीलिए उन्हें देवों के देव महादेव कहा जाता है। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। उन्होंने राम को भी वरदान दिया और रावण को भी।
शिव कल आज और कल Shiv – Past, Present & Future
भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे।
मुण्डमाला शिव भगवान की एक प्रमुख धारणा है, जो उनके भक्तों द्वारा पूजा जाता है। यह एक प्रकार की माला होती है जो शिव की नाम और महिमा का जाप करने के लिए प्रयोग की जाती है। मुण्डमाला में अनेक बार मूंडे लटकाए जाते हैं, जो शिव के लिए प्रस्तुत किए गए होते हैं। इस माला का प्रयोग ध्यान, जप और पूजा में किया जाता है, जिससे भक्त शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
त्रिपुंड Tripund
त्रिपुंड एक प्रमुख धारणा है जो हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण है। यह शिव भगवान के भक्तों द्वारा धारण किया जाता है। त्रिपुंड्र का अर्थ होता है तीन धाराओं का चिह्न। इसे तीनों शिरों पर धारण किया जाता है: फोरहेड, जिसे तिलक कहा जाता है, और दोनों बाहरी भागों पर भी। त्रिपुंड्र का धारण करने से भक्त शिव की कृपा, समृद्धि, और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पूजा और ध्यान में उपयोग किया जाता है, जो भक्तों को मुक्ति और आत्मा के संयम की प्राप्ति में सहायक होता है।
भस्म Bhasm
जो शिव भगवान के भक्तों द्वारा प्रयोग किया जाता है। यह चिता से अद्वितीय प्रकार के लकड़ी के दाह से प्राप्त किया जाता है। भस्म का धारण करने से शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है और भक्त अपने अंतिम समय में मोक्ष की प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं। यह पूजा, ध्यान, और साधना में उपयोग किया जाता है और भक्तों को आत्मा के मोक्ष की ओर अग्रसर करने में मदद करता है।
धन्यवाद !!