क्यों कृष्ण रणछोड़राय कहलाते हैं? Krishnas Ranchod Rai Story
आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार,
भगवान श्री कृष्ण के कई नाम में से एक नाम रणछोड़राय है|
रण = युद्धभूमि , छोड़ = छोड़कर भागना,
ऐसा कौन सा युद्ध था ? कौन बलशाली योद्धा था ? जिस कारण भगवान को रण छोड़ने की नौबत आ गई |
समस्त सृष्टि के कर्ताधर्ता भगवान श्री कृष्ण का नाम रणछोड़राय क्यों पड़ा?
भगवान जी ने किस कारण युद्ध का मैदान छोड़ दिया ?
एक इशारे से समस्त सृष्टि का नाश जो कर सकते हैं, आखिर उन्होंने किस वजह से रण छोडा?
इन सभी सवालों का जवाब आज हम एक पौराणिक कथा से जानने की कोशिश करेंगे |
मुचुकुन्द कौन थे? Who Is Muchukand In Hindi
Krishnas Ranchod rai Story
त्रेता युग में महाराजा मान्धाता के तीन पुत्र हुए, अमरीष, पुरू और मुचुकुन्द। युद्ध नीति में निपुण होने से देवासुर संग्राम में इंद्र ने महाराज मुचुकुन्द को अपना सेनापति बनाया। युद्ध में विजय श्री मिलने के बाद महाराज मुचुकुन्द ने विश्राम की इच्छा प्रकट की। देवताओं ने वरदान दिया कि जो तुम्हारे विश्राम में अवरोध डालेगा, वह तुम्हारी नेत्र ज्योति से वहीं भस्म हो जायेगा।
देवताओं से वरदान लेकर महाराज मुचुकुन्द श्यामाष्चल पर्वत (जहाँ अब मौनी सिद्ध बाबा की गुफा है) की एक गुफा में आकर सो गयें।
जब जरासंध ने कृष्ण से बदला लेने के लिए मथुरा पर 18वीं बार चढ़ाई की तो कालयवन भी युद्ध में जरासंध का सहयोगी बनकर आया। कालयवन महर्षि गार्ग्य का पुत्र व म्लेक्ष्छ देश का राजा था। वह कंस का भी परम मित्र था। भगवान शंकर से उसे युद्ध में अजय का वरदान भी मिला था।
भगवान श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहा जाता है? Bhagwan Shree Krishna Ko Ranchod rai Kyu Kaha Jata Hai?
भगवान शंकर के वरदान को पूरा करने के लिए भगवान कृष्ण रण क्षेत्र छोड़कर भागे। तभी भगवानश्री कृष्ण को रणछोड़( Ranchod rai ) भी कहा जाता है। कृष्ण को भागता देख कालयवन ने उनका पीछा किया। मथुरा से करीब सवा सौ किमी दूर तक आकर श्यामाश्चल पर्वत की गुफा में आ गये, जहाँ मुचुकुन्द महाराज जी सो रहे थे।
कृष्ण ने अपनी पीताम्बरी मुचुकुन्द जी के ऊपर डाल दी और खुद एक चट्टान के पीछे छिप गये। कालयवन भी पीछा करते करते उसी गुफा मे आ गया। दंभ मे भरे कालयवन ने सो रहे मुचुकुन्द जी को कृष्ण समझकर ललकारा। मुचुकुन्द जी जागे और उनकी नेत्र की ज्वाला से कालयवन वहीं भस्म हो गया।
श्री कृष्ण के विष्णु रूप दर्शन Krishna’s Vishnuroop Darshan In Hindi Krishnas Ranchod rai Story
भगवान कृष्ण ने मुचुकुन्द जी को विष्णुरूप के दर्शन दिये। मुचुकुन्द जी दर्शनों से अभिभूत होकर बोले, हे भगवान! तापत्रय से अभिभूत होकर सर्वदा इस संसार चक्र में भ्रमण करते हुए मुझे कभी शांति नहीं मिली। देवलोक का बुलावा आया तो वहाँ भी देवताओं को मेरी सहायता की आवश्कता हुई। स्वर्ग लोक में भी शांति प्राप्त नही हुई। अब मै आपका ही अभिलाषी हूँ, श्री कृष्ण के आदेश से महाराज मुचुकुन्द जी ने पाँच कुण्डीय यज्ञ किया।
यज्ञ की पूर्णाहुति ऋषि पंचमी के दिन हुई। यज्ञ में सभी देवी-दवताओ व तीर्थों को बुलाया गया। इसी दिन भगवान कृष्ण से आज्ञा लेकर महाराज मुचुकुन्द गंधमादन पर्वत पर तपस्या के लिए प्रस्थान कर गये। वह यज्ञ स्थल आज पवित्र सरोवर के रूप में हमें इस पौराणिक कथा का बखान कर रहा है।
लक्खी मेला Lakkhi Mela In Hindi Krishnas Ranchod rai Story
सभी तीर्थो का नेह जुड़ जाने के कारण धौलपुर में स्थित तीर्थराज मुचुकुन्द तीर्थों का भांजा भी कहा जाता है। हर वर्ष ऋषि पंचमी व बलदेव छठ को जहाँ लक्खी मेला लगता है। मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। शादियों की मौरछड़ी व कलंगी का विसर्जन भी यहाँ करते है।
माना जाता है कि, यहाँ स्नान करने से चर्म रोग सम्बन्धी पीड़ित को समस्त पीड़ाओं से छुटकारा मिलता है।
यह गुफा आज भी धौलपुर में स्थित है। इसका उल्लेख विष्णु पुराण व श्रीमद्भागवत की दसवें स्कंध के पंचम अंश 23वें व 51 वें अध्याय में मिलता है।
अब हम भगवान श्री कृष्ण के रणछोड़ राय (ranchod rai) मंदिर के बारे में कुछ बातें जानेंगे |
डाकोर धाम Dakor Dham In Hindi
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भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक गुजरात का डाकोर धाम, भगवान श्री कृष्ण के अद्भुत एवं अति सुंदर स्वरुप के लिए जाना जाता है। यहां रणछोड़जी का भव्य मंदिर है, जिसके धार्मिक महत्व की वजह से और भक्तों में यहां के प्रति गहरी आस्था होने की वजह से लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते ही है।
डाकोर मंदिर Dakor Mandir In Hindi
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गुजरात के मध्य में स्थित डाकोर मंदिर भगवान श्री कृष्ण की परमप्रिय भव्य मूर्ति के लिए एक आध्यात्मिक और धार्मिक स्थल के रूप में उभरता है। यहाँ का रणछोड़जी मंदिर धार्मिक महत्व के साथ-साथ, भक्तों की आस्था को आकर्षित करता है और यहां पर रोजाना दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं।
डाकोर मंदिर को केवल आध्यात्मिक वातावरण के लिए ही नहीं, बल्कि अद्वितीय शिल्पकला के लिए भी प्रसिद्ध जाना जाता है, जो दर्शकों को आश्चर्यचकित करती है। यह सभी समुदायों को बिना किसी भेदभाव के पूजा-अर्चना करने के लिए एक साथ लाता है।
मंदिर की भव्यता और सुंदरता का अनुभव करने के लिए भक्तों के लिए वहां एक सुंदर तालाब भी है, जो कि धार्मिक और आध्यात्मिक वातावरण को और भी महसूस कराता है।
डाकोर मंदिर पहुंचने का तरीका अवश्य ही आसान है, जिसे हवाई, रेल और सड़क द्वारा किया जा सकता है। धार्मिक और आध्यात्मिक खोज के लिए इस पवित्र स्थल को अनुभव करने के लिए भक्तों के लिए यह एक सच्ची प्रेरणा का स्रोत है।
गुजरात में द्धारकाधीश मंदिर की तरह ही डाकोर में भगवान रणछोड़ जी के मंदिर का महत्व है। इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के सांवले रंग के अति सुंदर और भव्य प्रतिमा विराजित है, वहीं गोमती नदी के किनारे बनाए गए इस अतिसुंदर और भव्य मंदिर का निर्माण सफेद संगममर से किया गया है।
डाकोर मंदिर का इतिहास – भक्ति और चमत्कारों की कहानी History Of Dakor Temple In Hindi
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गुजरात के प्रसिद्ध रणछोड़जी मंदिर का इतिहास एक रोचक कथाओं से भरा है, जिसमें से एक कथा द्वारका से चोरी के आसपास है।
माना जाता है कि, गुजरात के शहर डाकोर में एक श्रेष्ठ राजपूत बाजे सिंह निवास करते थे, जिनकी भगवान रणछोड़जी के प्रति अटूट भक्ति की शोभा थी। हर साल, बाजे सिंह और उनकी पत्नी द्वारका की यात्रा पर जाया करते थे, जहां वे भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी के पत्ते अर्पित करते थे।
वर्षों तक, बाजे सिंह ने इस पवित्र परंपरा को उत्तम श्रद्धा के साथ जारी रखा। हालांकि, उम्र और यात्रा की क्षमता के साथ, वे अब और नहीं जा सकते थे। कहा जाता है कि एक पूर्णिमा की रात, भगवान रणछोड़जी ने बाजे सिंह के सपनों में प्रकट होकर उन्हें द्वारका से अपनी मूर्ति को डाकोर लाने के लिए निर्देशित किया।
भगवान के दिव्य प्रेरणा से युक्त, बाजे सिंह ने खुद को इस साहसिक मिशन पर उतार दिया। अंधेरे के ढंग से, उन्होंने द्वारका मंदिर में गुप्त रूप से प्रवेश किया, भगवान रणछोड़जी की मूर्ति को प्राप्त किया, और उसे सम्मान से डाकोर ले आए, जहां उन्होंने उसे स्थापित किया।
भगवान रणछोड़जी की मूर्ति का डाकोर में आगमन कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन के साथ हुआ, इसीलिए इस दिन को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है |
यहां द्वारका में जब मंदिर सेभगवान जी की मूर्ति गायब हो गई, तब पुजारी और गांव के लोग उसे खोजने लगे | आखिरकार, गोमती सरोवर की गहराई में उन्हें एक छिपी हुई मूर्ति प्राप्त हुई | ऐसा कहा जाता है की, मूर्ति की खोज के वक्तपुजारी के हाथों अनजाने मेंमूर्ति कोभला चुब गया | जिसकी वजह से मूर्ति पर एक निशान हो गया | द्वारका के द्वारकाधीश मंदिर में मंदिर की मूर्ति पर आज भी एक निशान दिखाई देता है |
मूर्ति की पुनर्प्राप्ति के बावजूद, इसकी स्थापना डाकोर में बाजे सिंह की अटल श्रद्धा और भक्ति ने की। आज, डाकोर मंदिर भगवान रणछोड़जी और उनके भक्तों के अद्वितीय संबंध का एक प्रमाण है।
इस तरह द्धारका जी मंदिर के पुजारी को मूर्ति तो मिल गई, लेकिन फिर बाजे सिंह के कहने पर वह भगवान की इस प्रतिमा के बराबर स्वर्ण मुद्रा लेकर मूर्ति को डाकोर में स्थापित करने के लिए राजी हो गया। और इस तरह श्याम रंग-रुप वाले भगवान रणछोड़ भगवान जी यहां विराजित हो गए, और आज रणछोड़ जी के इस अति सुंदर मंदिर से तमाम भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है।
डाकोर धाम कैसे पहुंचे – How to Reach Dakor Dham
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- हवाई मार्ग – सबसे पास का हवाई अड्डा अहमदाबाद में है, जो कि डाकोर से करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- रेलमार्ग – डाकोर आनंद-गोधरा बड़ी लाइन रेलवे मार्ग पर स्थित है। वहीं डाकोर से करीब 33 किलोमीटर की दूरी पर आणंद रेलवे स्टेशन है।
- सड़क मार्ग – डाकोर जाने के लिए अहमदाबाद से कई पर्सनल टैक्सी, बसें चलती हैं, वहीं भक्त जन चाहे तो अपने वाहन से भी यहां जा सकते हैं।
धन्यवाद !
Very interesting!!