Ganesh Chalisa Lyrics With Meaning गणेश चालीसा अर्थ के साथ

Ganesh Chalisa

गणेश चालीसा

आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार,

वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभ

 निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा

एकदन्ताय  विद्महे| वक्रतुंडाय धीमहि| तन्नो दंति प्रचोदयात्

ऊपर दिए गए मंत्र का उच्चारण कर गणेश जी का ध्यान करें | फिर गणेश चालीसा का पाठ करें, अंत में ‘श्री गणेशाय नमः’ मंत्र का 108 बार 1 की माला से जप करें | जप के साथ अर्थ की भावना करने से कार्य सिद्धि जल्दी होती है |

विघ्नहर्ता एकदंत को हम सब बहुत प्यार करते हैं. उनकी पूजा सर्वप्रथम होती है.  गणेश जी की पूजा करते वक्त गणपति अथर्वशीर्ष,  संकटनाशन महा गणपति स्तोत्रम, गणेश मंत्र, अष्टोत्तरशत नामावली,  एकदंत नामाष्टक स्तोत्रम एवं आरती को विशेष महत्व दिया जाता है|

आज हम गणेश चालीसा के बारे में संस्कृत श्लोक तथा उसका अर्थ यहां पर जानेंगे.

गणेश चालीसा

जय जय जय वंदन भुवन, नंदन गौरी गणेश |

दुख द्वंद्वन फंदन हरान, सुंदर सुवन महेश ||

जयति शंभू सूत गौरी नंदन |

विघ्न हरन  नासन भव फंदन ||

जय गणनायक जनसुख दायक |

विश्व विनायक बुद्धि विधायक ||

एक रदन गज बदन विराजत |

वक्रतुंड शुची शुंड सुसाजत ||

तिलक त्रिपुंड भाल शशि सोहत |

छवि लखि सूर नर मुनि मन मोहत ||

उर मणिमाल सरोरुह लोचन |

रत्न मुकुट सिर सोच विमोचन ||

कर कुठार शुचि सुभग त्रिशूलम |

मोदक सुगंधित  फूलम ||

सुंदर पितांबर तन साजित |

चरण पादुका मुनि मन राजित ||

धनि शिव सुवन भुवन सुखदाता |

गौरी ललन षडानन भ्राता ||

रिद्धि सिद्धि तव चंवर सुढारहिं |

मूषक वाहन सोहित द्वारहिं ||

तव महिमा को बरनै पारा |

जन्म चरित्र विचित्र तुम्हारा ||

एक असुर शिवरूप बनावै |

गौरहिं छलन हेतु तहं आवै ||

एहि कारण ते  श्री शिव प्यारी |

निज तन मैल मूर्ति रची डारी ||

सो निज सुत करि गृह रखवारे |

द्वारपाल सम तेही बैठा रे ||

जबहिं स्वयं  श्री शिव तहं आए |

बिनु पहचान जान नहीं पाए ||

पुछयो शिव हो किनके लाला |

बोलत भे तुम वचन रसाला ||

मैं हूं गौरी सुत सुनि लीजै |

आगे पग न भवन हित दीजै ||

आवहिं मातु वह बूझि तब जाओ |

बालक से जनि बात बढ़ाओ ||

चलन चह्यो शिव बचन न मान्यो |

तब है क्रुद्ध युद्ध तुम ठान्यो ||

तत्क्षण नहीं कछु शंभू बीचारियो |

गहि त्रिशूल भूल वश मारियो ||

शिरीष फूल सम सिर कटि गयउ |

छट उड़ी लो प गगन महं भयउ ||

गयो शंभू जब भवन मंझारी | 

जहं बैठी गिरिराज कुमारी ||

पूछें शिव निज मन मुसकाये |

कहहू सती सुत कहं ते जाये ||

खुलिगे भेद कथा सुनि सारी |

गिरी विकल गिरिराज दुलारी ||

कियो न भल स्वामी अब जाओ |

लाओ शीश  जहां से पाओ ||

चल्यो विष्णु संग शिव विज्ञानी |

मिल्यो न  सो हस्तिहिं सिर आनी ||

धड़ ऊपर स्थित कर दीन्ह्यो |

प्राण वायु संचालन किन्ह्यो ||

श्री गणेश  तब  नाम धरायो |

विद्या बुद्धि अमर वर पायो ||

भे प्रभु प्रथम पूज्य  सुखदायक |

विघ्न विनाशक बुद्धि विधायक ||

प्रथमहिं नाम लेत तव जोई |

जग कहं सकल काज सिध होई ||

सुमिरहिं तुमहिं मिलहिं सुख नाना |

बिनु तव कृपा न कहूं कल्याना ||

तुम्हरहिं शाप भयो जग अंकित |

भादो चौथ चंद्र अकलंकित ||

जबहिं परीक्षा शिव तूहिं लीन्हा |

प्रदक्षिणा पृथ्वी कहि दीन्हा ||

षडमुख चल्यो मयूर उड़ाई |

बैठी  रचे तुम सहज उपाई ||

राम नाम महि पर लिखि अंका |

किन्ह प्रदक्षिण तजि मन शंका ||

श्री पितु मातु चरणधरि लिन्ह्यो |

ता कहं सात प्रदक्षिणा कीन्ह्यो ||

पृथ्वी परिक्रमा फल पायो |

अस लखि सुरन सुमन बरसायो ||

‘सुंदरदास’  राम का चेरा |

दुर्वासा आश्रम धरी डेरा ||

वीरच्यो श्री  गणेश चालीसा |

शिव पुराण वर्णित योगिशा ||

नित्य गजानन जो गुण गावत |

गृह बसि सुमति परम सुख पावत ||

जन धन धान्य सुवन सुखदायक |

देहि सकल शुभ श्री गणनायक ||

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै धरि ध्यान |

नित नव मंगल मोद लही, मिले जगत सम्मान ||

द्वै सहस्त्र दस विक्रमी, भाद्र कृष्ण तिथि गंग |

पूरन चालीसा भयो, सुंदर भक्ति अभंग ||

गणेश चालीसा का अर्थ Meaning Of Ganesh Chalisa In Hindi

जय जय जय वंदन भुवन, नंदन गौरी गणेश |

दुख द्वंद्वन फंदन हरान, सुंदर सुवन महेश ||

जयति शंभू सूत गौरी नंदन |

विघ्न हरन  नासन भव फंदन ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

हे पार्वती को आनंद देने वाले, द्वंद्व को हरने वाले, महेश के सुंदर लाडले,  जगत- वंद्य गणेश ! आपकी जय हो |

हे शंभू- गौरी पुत्र गणेश, आपकी जय हो | आप विघ्न हरण और भव बंधनों को नष्ट करने वाले हैं |

जय गणनायक जनसुख दायक |

विश्व विनायक बुद्धि विधायक ||

एक  रदन गज बदन विराजत |

वक्रतुंड शुची शुंड सुसाजत ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

भक्तों को सुख देने वाले, विश्व गुरु तथा बुद्धि को व्यवस्थित करने वाले गणनायक आपकी जय हो |

हे वक्रतुंड ! आपके गजमुख में एक दांत विराजमान है और आपकी पवित्र सुंड भी सुसज्जित है |

तिलक त्रिपुंड भाल शशि सोहत |

छवि लखि सूर नर मुनि मन मोहत ||

उर मणिमाल सरोरुह लोचन |

रत्न मुकुट सिर सोच विमोचन ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

आपके मस्तक पर त्रिपुंड और चंद्रमा सुशोभित है | आपका सौंदर्य सबके मन को मोहने वाला है |

आपके वक्ष पर मणि माला है, कमल सम नेत्र है, रत्नों का मुकुट है |आप भक्तों की चिंता करते हैं |

कर कुठार शुचि सुभग त्रिशूलम |

मोदक सुगंधित  फूलम ||

सुंदर पितांबर तन साजित |

चरण पादुका मुनि मन राजित ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

आपके हाथों में पवित्र कुठार और त्रिशूल है | आपको लड्डुओं का भोग और सुगंधित फूल प्रिय है |

आप सुंदर- पीले रेशमी वस्त्र से शोभित है | आपकी चरण पादुका भक्तों का मन लुभाने वाली है |

धनि शिव सुवन भुवन सुखदाता |

गौरी ललन षडानन भ्राता ||

रिद्धि सिद्धि तव चंवर सुढारहिं |

मूषक वाहन सोहित द्वारहिं ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

हे जगत को सुख देने वाले शिव- पुत्र, गौरी – नंदन और कार्तिकेय के भाई !  आप धन्य है |

रिद्धियां -सिद्धियां आपकी सेवा में चंवर (पंखा) डूलाती है  और आपका वाहन मूषक दरवाजे पर सुशोभित रहता है |

तव महिमा को बरनै पारा |

जन्म चरित्र विचित्र तुम्हारा ||

एक असुर शिवरूप बनावै |

गौरहिं छलन हेतु तहं आवै ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

क्योंकि आपका जीवन चरित्र अद्भुत है,  इसीलिए कौन आप की महिमा का वर्णन कर सकता है?

गौरी (पार्वती) को छलने के निमित्त एक असुर शिव का रूप धारण कर वहां आया करता था |

एहि कारण ते  श्री शिव प्यारी |

निज तन मैल मूर्ति रची डारी ||

सो निज सुत करि गृह रखवारे |

द्वारपाल सम तेही बैठा रे ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

इस कारण शिव- प्रिया पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल उतारकर उससे एक मूर्ति की रचना कर डाली |

उन्होंने आपको अपना पुत्र कह कर घर की रक्षा के लिए द्वारपाल के समान घर के द्वार पर बैठा दिया |

जबहिं स्वयं  श्री शिव तहं आए |

बिनु पहचान जान नहीं पाए ||

पुछयो शिव हो किनके लाला |

बोलत भे तुम वचन रसाला ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

जब वहां शिव जी पधारे तब उन्हें न पहचान ने के कारण आपने उन्हें घर के अंदर नहीं जाने दिया |

शिव जी ने जब आपसे पूछा, आप किसके पुत्र हैं?  तो आपने बड़े ही मधुर वाणी में उन्हें बताया

मैं हूं गौरी सुत सुनि लीजै |

आगे पग न भवन हित दीजै ||

आवहिं मातु वह बूझि तब जाओ |

बालक से जनि बात बढ़ाओ ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

ध्यान देखकर सुनिए,  मैं गौरी का पुत्र गणेश हु | अब कृपया आप घर की ओर पैर न  बढ़ावे |

मैं मां से पूछ कर आता हूं,  तभी आप भीतर जा सकेंगे | मुझे बालक जानकर अधिक बात न बढ़ाइए |

चलन चह्यो शिव बचन न मान्यो |

तब है क्रुद्ध युद्ध तुम ठान्यो ||

तत्क्षण नहीं कछु शंभू बीचारियो |

गहि त्रिशूल भूल वश मारियो ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

जब शिवजी ने बात नहीं मानी और आगे बढ़ना चाहा तब रोष में आकर आपने शिव से युद्ध ठान लिया |

शिव जी ने कुछ भी विचार किए बिना तत्काल त्रिशूल पकड़ा और भूल से आपके ऊपर प्रहार कर दिया |

शिरीष फूल सम सिर कटि गयउ |

छट उड़ी लो प गगन महं भयउ ||

गयो शंभू जब भवन मंझारी | 

जहं बैठी गिरिराज कुमारी ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

शिरीष- पुष्प के समान आपका कोमल सिर कट गया और तुरंत उड़कर आकाश में विलीन हो गया |

जब शिवजी भवन के भीतर वहां गए जहां पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती जी बैठी थी |

पूछें शिव निज मन मुसकाये |

कहहू सती सुत कहं ते जाये ||

खुलिगे भेद कथा सुनि सारी |

गिरी विकल गिरिराज दुलारी ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

तब मन- ही- मन मुस्कुराकर शिवजी ने पूछा– हे सती !  कहो, तुमने अपने पुत्रों को कैसे जन्म दिया ?

संपूर्ण कथा सुनते ही भेद खुल गया | हिमालय की पुत्री गौरी विकल होकर धरती पर गिर पड़ी |

कियो न भल स्वामी अब जाओ |

लाओ शीश  जहां से पाओ ||

चल्यो विष्णु संग शिव विज्ञानी |

मिल्यो न  सो हस्तिहिं सिर आनी ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

और बोली– हे स्वामी !  आपने यह अच्छा नहीं किया | आप कैसे भी हो,  मुझे मेरे पुत्र का सिर लाकर दो |

सिर न मिलने पर विज्ञान में निपुण शिवजी विष्णु जी के साथ जाकर हाथी का सिर ले आए |

धड़ ऊपर स्थित कर दीन्ह्यो |

प्राण वायु संचालन किन्ह्यो ||

श्री गणेश  तब  नाम धरायो |

विद्या बुद्धि अमर वर पायो ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

तत्पश्चात उस शेर को शिवजी ने गणेश जी के धड़ के ऊपर स्थित कर उसमें प्राणवायु का संचार कर दिया |

शिवजी ने आपका नाम श्री गणेश रखा | इस प्रकार आपने विद्या- बुद्धि के साथ अमरत्व का वरदान पाया |

भे प्रभु प्रथम पूज्य  सुखदायक |

विघ्न विनाशक बुद्धि विधायक ||

प्रथमहिं नाम लेत तव जोई |

जग कहं सकल काज सिध होई ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

आपकी सर्वप्रथम पूजा सदैव सुखदाई होती है जिसमें विघ्नों का नाश एवं बुद्धि में वृद्धि होती है |

जब भी कोई कार्य आरंभ से पहले आपका नाम लेता है,  संसार में उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं |

सुमिरहिं तुमहिं मिलहिं सुख नाना |

बिनु तव कृपा न कहूं कल्याना ||

तुम्हरहिं शाप भयो जग अंकित |

भादो चौथ चंद्र अकलंकित ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

आपके स्मरण मात्र से ही नाना सुख उपलब्ध हो जाते हैं | आपकी कृपा के बिना कहीं कल्याण नहीं |

आपके शाप से चंद्रमा कलंकित हो गया | तब से भादो की चतुर्थी को कोई चंद्र दर्शन नहीं करता |

जबहिं परीक्षा शिव तूहिं लीन्हा |

प्रदक्षिणा पृथ्वी कहि दीन्हा ||

षडमुख चल्यो मयूर उड़ाई |

बैठी  रचे तुम सहज उपाई ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

जब शिवजी ने आपकी परीक्षा लेनी चाहि,  तब उन्होंने आपको पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने को कहा |

प्रदक्षिणा के लिए कार्तिकेय स्वामी  मयूर पर उड़ चले |  पर आपने बैठे-बैठे एक सरल उपाय रच डाला |

राम नाम महि पर लिखि अंका |

किन्ह प्रदक्षिण तजि मन शंका ||

श्री पितु मातु चरणधरि लिन्ह्यो |

ता कहं सात प्रदक्षिणा कीन्ह्यो ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

आपने पृथ्वी पर राम का नाम लिखा और मन की शंकाओं को  त्याग प्रदक्षिणा कर डाली |

आपने भक्ति पूर्वक माता और पिता के चरण पकड़ लिए और उनकी सात परिक्रमाए कर ली |

पृथ्वी परिक्रमा फल पायो |

अस लखि सुरन सुमन बरसायो ||

‘सुंदरदास’  राम का चेरा |

दुर्वासा आश्रम धरी डेरा ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

इस तरह आपने पूरी पृथ्वी की परिक्रमा का फल पा लिया |  ऐसा देख देवगणों ने पुष्प वृष्टि की |

सुंदरदास नामक राम के दास,  जिनका डेरा ऋषि दुर्वासा का आश्रम था, वही रहते हुए |

वीरच्यो श्री गणेश चालीसा |

शिव पुराण वर्णित योगिशा ||

नित्य गजानन जो गुण गावत |

गृह बसि सुमति परम सुख पावत ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

श्री गणेश चालीसा की वैसी की रचना की है जैसी की शिवपुराण की महान ऋषियों ने की थी |

जो श्री गणेश के गुणों का नित्य गान करता है ,वह गृहस्थ में भी परम सुख प्राप्त करता है |

जन धन धान्य सुवन सुखदायक |

देहि सकल शुभ श्री गणनायक ||

श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै धरि ध्यान |

नित नव मंगल मोद लही, मिले जगत सम्मान ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

धन धान्य, पुत्रदि सुखों को देने वाले श्री गणेश जी अपने भक्तों को सारी शुभ वस्तुएं प्रदान करते हैं |

जो ध्यान से इस चालीसा का पाठ करता है, वह नित्य नव मंगल, सुख, प्रसन्नता और सम्मान पाता है |

द्वै सहस्त्र दस विक्रमी, भाद्र कृष्ण तिथि गंग |

पूरन चालीसा भयो, सुंदर भक्ति अभंग ||

अर्थ (गणेश चालीसा)

वि. सं २०१० भाद्रपद, कृ. तृतीयाको यह चालीसा पूर्ण हुआ और ‘ सुंदरदास’ को भक्ति सुख मिला |

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