Shrinathji: A Divine Leela Unfolds

Shrinathji: A Divine Leela Unfolds

“श्रीनाथजी की लीला” Shrinathji Ki Leela

आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार,

भगवान श्रीनाथजी ने आखिरकार गोपी रूप क्यों धारण किया | भगवान के इस लीला की अद्भुत कहानी आज हम जानेंगे |Shrinathji

श्रीनाथजी का मंत्र

मंत्र  =|| मननात्  +त्रायतो ||

मंत्र का अर्थ होता है ,जिसका मनन करने से आपकी रक्षा हो जाए उसी को मंत्र कहा जाता है|

श्रीनाथजी शरणं मम |
यमुनाजी शरणं मम ||
ठाकुर जी शरणं मम |
जय महाप्रभु जी शरणं मम ||

श्रीनाथजी की लीला Shrinathji’s Leela

एक भक्त थे, कुम्भनदासजी जो गोवर्धन की तलहटी में रहते थे। एक बार की बात है कि, भक्त कुम्भनदास जी भगवान श्रीनाथजी के पास गये, और उन्हें जाकर देखा कि श्रीनाथजी अपना मुँह लटकाये बैठे हैं। Shrinathji

कुम्भनदास जी बोले -प्रभु क्या हुआ, मुँह फुलाये क्यों बैठे हो। श्रीनाथजी बोले, क्या बताऊँ कुम्भन आज माखन खाने का मन कर रहयौ है। कुम्भनदास जी, बताओ प्रभु क्या करना चाहिए और माखन कहा से लाये। Shrinathji

श्रीनाथजी Shrinathji  देख कुम्भन एक गोपी है, जो रोज मेरे दर्शन करने आवे और मोते बोले कि प्रभु मोय अपनी गोपी बना लो सो आज वाके घर चलते हैं।

कुम्भनदास जी-  प्रभु काऊ ने देख लिये तो काह होगो।

श्रीनाथजी Shrinathji-  कौन देखेगौ आज वाके घर में वाके शादी है, सब बरात में गये हैं | घर पर सब गोपी ही गोपी है | और हम तो चुपके से जायेंगे किसी को पता ना चले |

कुम्भनदास जी –  ठीक प्रभु मै बुढ़ा और तुम हट्टे-कट्टे हो कोई बात अगर हो जाती है तो मुझे छोडके मत भाग आई ओ।

श्रीनाथजी Shrinathji-  ठीक है पक्की बात अगर कोई गोपी आ गयी तो साथ साथ भागेगे | नही तो माखन खाके चुप चाप भाग आयेगे।

श्रीनाथजी और कुम्भनदासजी दोनों गोपी के घर में जाने के लिये निकले, और चुपके से घर के बगल से एक छोटी सी दीवार से होकर जाने की योजना बना ली।

श्रीनाथजी Shrinathji कुम्भन तुम लम्बे हो पहले मुझे दीवार पर चढाओ।

कुम्भनदासजी-  “ठीक है प्रभु”

(कुम्भनदासजी ने प्रभु को ऊपर चढा दिया  और प्रभु ने कुम्भनदासजी को और दोनों गोपी के घर में घुसकर माखन खाने लगे, प्रभु खा रहे थे और कुम्भनदासजी को भी खिला रहे थे, कुम्भनदासजी की मूँछों में और मुँह पर माखन लग गयो तभी अचानक श्रीनाथजी कूँ एक बुढी मईय्या एक खाट पर सोती भई नजर आई जिसकी आँख खुली सी लग रही थी और उसका हाथ सीधा बगल की तरफ लम्बा हो रहा था यह देख प्रभु बोले।

श्रीनाथजी Shrinathji–  कुम्भन देख यह बुढी मईय्या कैसी देख रही हैं | और लम्बा हाथ करके माखन माँग रही है, थोडो सो माखन याकू भी दे देते हैं।

कुम्भनदासजी-  ना प्रभु  मरवाओगे क्या? बुढी मइय्या जग गयी न तो लेने के देने पड़ जायेगे।  Shrinathji

(श्रीनाथजी Shrinathji गये और वा बुढी मईय्या के हाथ पर माखन रख दिया, माखन ठण्डा ठण्डा लगा की बुढी मईय्या जग गयी और जोर जोर से आवाज लगाने लगी चोर चोर अरे कोई आओ घर में चोर घुस आयो। )

(बुढिया की आवाज सुनकर कर घर में से जो-जो स्त्री थी वो भगी चली आयी और इधर श्रीनाथजी भागे और उस दीवार को कुदकर भाग गये उनके पीछे कुम्भनदासजी भी भागे और दीवार पर चढने लगे वृद्ध होने के कारण दीवार पार नही कर पाये आधे चढे ही थे कि एक गोपी ने पकड कर खींच लिये और अन्धेरा होने के कारण उनकी पिटाई भी कर दी। जब वे उजाला करके लाये और देखा की कुम्भनदासजी है, तो वे अचम्भित रह गयी क्योंकि कुम्भनदासजी को सब जानते थे कि यह बाबा सिद्ध है। )

गोपी बोली-  बाबा तुम घर में रात में घुस के क्या कर रहे थे और यह क्या माखन तेरे मुँह पर लगा है| क्या माखन खायो बाबा तुम कह देते तो हम तुम्हारे पास ही पहुँचा देते। इतना कष्ट करने की क्या जरूरत थी। बाबा चुप थे, बोले भी तो क्या बोले। गोपी बोली, बाबा एक शंका है कि तुम अकेले तो नही आये होगे क्योंकि इस दीवार को पार तुम अकेले नही कर सकते।

कुम्भनदासजी-  अरी गोपी क्या बताऊँ कि  श्रीनाथजी के मन में तेरे घर को माखन खाने की आ गयी, कि यह प्रतिदिन कहे प्रभु मोये गोपी बना ले सो आज गोपी बनावे आ गये आप तो भाग गये मोये पिटवा दियो।

गोपी बडी प्रसन्न हुई कि आज तो मेरे भाग जाग गये।

यह सखीभाव लीला हैं, भक्त बडे विचित्र और उनके प्रभु उनसे भी विचित्र होते हैं।

इसी कारण से भगवंत गोपी वल्लभ भी कहा जाता है | Shrinathji

“जय जय श्री राधे राधे “

भारत के गुजरात शहर में श्रीनाथजी की मान्यता बहुत है और बृजवासी तो उनके सेवक ही है | भगवान श्रीनाथजी का मंदिरगुजरात के नाथद्वारा में है |

श्रीनाथ जी का इतिहास, मंगला, श्रृंगार, ग्वाल, राजभोग, उथपन, भोग आरती,शयन इन सब के बारे में विस्तार से हम एक अलग ब्लॉक बनाएंगे |

श्रीनाथजी को जानना उनके बारे में पढ़ने से एक अलग ही  एहसास होता है

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