Panchmukhi Hanuman & Dandiwale Temple: A Divine Chronicle 5

Panchmukhi Hanuman & Dandiwale Temple: A Divine Chronicle

श्री दांडी वाले हनुमान जी मंदिर Shri Dandi Wale Hanuman Ji Mandir

यह अति प्राचीन एवं त्रेतायुग कालीन मंदिर है | जहां हनुमान जी महाराज अपने पुत्र मकरध्वज जी के साथ स्वयंभू विराजमान है |

हनुमान जी जब लंका दहन कर के लौट रहे थे, तो अपनी पूंछको बुझाने के लिए समुद्र के जल में गए थे, उसे वक्त हनुमान जी के पसीने की बूंदे समुद्र के जल में गिरी, वह बूंदे मकरी नाम की मगरमच्छ ने ग्रहण कर ली | तो उनके प्रभाव से हनुमान जी के यह पुत्र मकरध्वज जी का जन्म हुआ था | किंतु उसे वक्त पिता पुत्र एक दूसरे को जानते नहीं थे | Hanuman

श्री दंडी वाले हनुमान जी के मंदिर का स्थान Shri Dandi Wale Hanuman Ji Temple Location

श्री दंडी वाले हनुमान जी का मंदिर द्वारका में स्थित बेट द्वारका में मौजूद है | इस स्थान पर पानी में राम नाम का पत्थर हम तैरते हुए देख सकते हैं | यह स्थान अत्यधिक शांत है | स्थान पर हमें मन की शांति एवं सुकून प्राप्त होता है | 

इस स्थान पर पहुंचने के लिए द्वारका से बेट द्वारका तक जाना होगा | बेट द्वारका जाने के लिए द्वारका से समुद्र तट पर जाकर, शिप में बैठकर बेट द्वारका पहुंचे , वहां से रिक्शा सेगांव के इस प्राचीन मंदिर तक का सफर तय किया जा सकता है | लगभग 6 से 7 किलोमीटर का यह सफरआधा घंटे में तय हो जाता है | यहां से कुछ दूरी पर आशापुरी माता का मंदिर है | इस मंदिर में अखंड धूनी, चंद्र मंदिर एवं 84 लाख योनियों के भी दर्शन प्राप्त होते हैं | Hanuman

Hanuman

दांडी वाले हनुमान जी मंदिर का इतिहास History Of The Dandi Wala Temple

रामायण काल में अहिरावण और महिरावण नाम के दो मायावी राक्षस राम जी और लक्ष्मण जी को बंदी बनाकर बलि देने के लिए पता ले गए, तब हनुमान जी राम-लक्ष्मणजी की खोज करते हुए इस स्थल पर आए थे | यहां पर आकर हनुमान जी को पाताल द्वारा मिला था, द्वार पर आकर हनुमान जी ने देखा तो द्वारपाल के रूप में उनके ही बेटे मकरध्वज खड़े थे | पिता – पुत्र एक दूसरे को जानते नहीं थे, तो जैसे ही हनुमान जी ने पाताल में प्रवेश किया दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ | 

हनुमान जी सोचने लगे कि मेरे एक प्रहार से कोई दोबारा उठ नहीं पता तो यह महाबली को है कौन जो बार-बार मुझेसे युद्ध कर रहा है | युद्ध चल रहा था उसी दौरान मकरध्वज जी की माता मकरी आ गई, उन्होंने हनुमान जी से कहा कि प्रभु आप यह किस युद्ध कर रहे हैं, यह तो आपका पुत्र है | हनुमान जी बोले मैं तो अखंड ब्रह्मचारी हूं मेरा पुत्र कैसे..? तब मकरी ने बताया कि आपके प्रस्वेद बिंदु से जन्मा यह आपका पुत्र मकरध्वज है..! तो इस प्रकार पिता पुत्र का युद्ध भी इसी भूमि पर हुआ और दोनों का मिलन भी इसी स्थल पर हुआ |

संकटमोचन हनुमान अष्टक की सातवीं कड़ी इस मंदिर का हिस्सा है…

बंधु समेत जबै अहिरावन, लै रघुनाथ पाताल सिधारो |

देबिहिं पूजि भली बिधि सों बलि, देऊ सबै मिति मंत्र बिचारो ||

जाय सहाय भयो तब ही, अहिरावन सैन्य समेत सँहारो |

को नहिं जानत है जग में कपि,

संकट मोचन नाम तिहारो || 7 ||

Hanuman

हनुमान जी का पंचमुख स्वरूप Panchmukhi Hanuman Ji Story

ॐ नमो हनुमते रुदावताराय सर्व शत्रु संहारणाय

सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा |

जैसे ही मकरध्वज जी को पता चला कि यह मेरे पिताजी है, तो हनुमान जी की शरण में चले गए, उनकी सहायता की, फिर हनुमान जी ने पाताल में जाकर पंचमुखी स्वरूप धारण किया | अहिरावण को देवी महामाया का वरदान था, उन्होंने पांच दीपक अलग-अलग दिशा में प्रज्वलित करके रखे थे वह पांचो दीपक अगर एक साथ बुझाने जाए तभी अहिरावण की मृत्यु संभव थी..!

अहिरावण की मृत्यु का यह रहस्य जानने के बाद हनुमान जी ने सर्वप्रथम बार यहां पर पाताल में पंचमुख स्वरूप धारण किया, अपने पांचो मुखो से अहिरावण के पांच दीपक एक साथ बुझा दिए और अहिरावण का सी सहित शहर करके प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी को बंदी से मुक्त करवा के इसी भूमि से वापस ले गए |

श्री दंडी वाले हनुमान जी के मंदिर की कुछ विशेषताएं Features Of The Dandi Wala Temple of Hanuman Ji

यहां हनुमान जी छोटे हैं, मकरध्वज जी बड़े हैं !… उसके पीछे ऐसी दंतकथा है कि, कलयुग के दुष्प्रभाव के कारण हनुमान जी धीरे-धीरे पाताल में जा रहे हैं और मकरध्वज जी पाताल से बाहर आ रहे हैं | ऐसी मान्यता है किजब हनुमान जी की यह पूरी मूर्ति पाताल में चली जायेगी कलयुग समाप्त हो जाएगा |

सभी मंदिरों में हनुमान जी के पास शस्त्र के रूप में गधा होती है, किंतु यहां उनके पास मुकदर का दंड है ! … ऐसी दंतकथा है कि पिता पुत्र का युद्ध भी मुकदर के दंड से हुआ था, हनुमान जी के हाथों में दंड होने के कारण यह दांडी वाले हनुमान जी कहलाते हैं |

यहां हनुमान जी का मुखारबिंद आप देखोगे तो मानव स्वरूप में है !…. सभी मंदिरों में हनुमान जी वानर स्वरूप में विराजमान होते हैं किंतु यहां उनका प्राकट्य मानव स्वरूप में हुआ है | हनुमान जी और मकरध्वज की यह मूर्तियां स्वयंभू प्रकट मानी जाती है |

यह मंदिर सुपारी की मन्नत के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है, ऐसा माना जाता है कि हनुमान जी के स्वरूप में दी जाने वाली सुपारी घर ले जाकर पूजा करने से मनोकामना पूर्ण होती है |

मंदिर की तरफ से पिछले 30 सालों से 365 दिन निशुल्क भंडारा चलता है | या रहने की और भोजन की सुंदर व्यवस्थाएं हैं | कोई भी यात्री  यहां रुकना चाहे तो रुक सकता है | Hanuman

बोलो श्री दंडी वाले हनुमान जी की जय !

श्री राम जय राम जय जय राम !

जीवन में आए दुख और कष्टो का नाश करने के लिए संकटमोचन हनुमान अष्टक एवं हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है |

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