Uttarayan – Exploring the Significance Of Makar Sankranti
नमस्कार दोस्तों,
आज हम मकर संक्रांति 2024 के बारे में जानने जा रहे हैं।
इस साल मकर संक्रांति बेहद खास है. क्योंकि करीब 77 साल बाद वेरियन नाम आया है. इस साल मकर संक्रांति हमेशा की तरह 15 जनवरी को मनाई जाएगी. करीब पांच साल बाद मकर संक्रांति सोमवार को आ रही है |
देश एकत्यौहार एकतरीके अनेक इस बात को ध्यान रखते हुए मकर संक्रांति का त्योहार गुजरात में पतंग उड़ाकर महाराष्ट्र में हल्दी,- कुमकुम का पर्व मना कर तो पंजाब में नई फसल लगाकर किया जाता है|
फिर साल का पहला त्योहार मकर संक्रांति हमें वैज्ञानिक, पारंपरिक, ज्योतिष शास्त्र के साथ-साथ, हमें दान कर शुभ कर्मों से पुण्य कमाने का संदेश देता है।
कैसे हम इस ब्लॉग में देखेंगे. हमें अपनी प्रतिक्रिया जरूर बताएं.
वेरियन योग Variayan Yog Of Uttarayan
इस साल मकर संक्रांति पर दो विशेष योग भी बन रहे हैं. मकर संक्रांति पर रवि और वरियान योग बन रहा है। दुर्लभ संयोग बनने से मकर संक्रांति का महत्व बढ़ गया है। रवि एवं वारियन योग समृद्धिकारक एवं सफलतादायक होते हैं।
14 जनवरी को दोपहर 2:44 बजे सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेगा। वरियान योग सूर्योदय से 15 जनवरी की रात 11:11 बजे तक है।
रवि योग सुबह 7:15 से 8:07 बजे तक है. इस दौरान पूजा और दान करने से अच्छी सेहत का आशीर्वाद मिलता है। पूरा दिन पूजा-पाठ और दान-पुण्य के लिए उपयुक्त है।
मकर संक्रांति Uttarayan
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दौरान गंगा स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व है। गंगा स्नान और सूर्य को जल चढ़ाने से जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। और जीवन खुशियाँ और सौभाग्य लाता है।
मकर संक्रांति भारत के लगभग सभी राज्यों में मनाई जाती है। लेकिन हर जगह का नाम और मनाने का तरीका थोड़ा अलग होता है। उत्तर भारत में इसे ‘खिचड़ी’ दान करके मनाया जाता है, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र में इसे ‘उत्तरायण’ के नाम से जाना जाता है। दक्षिण भारत में इसे पोंगल, पंजाब में लोहड़ी और असम में माघ के नाम से जाना जाता है।
नए साल का पहला त्यौहार पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
मकर संक्रांति क्यों मनाते हैं? Why do we celebrate Uttarayan
मूलतः यह मकर संक्रांति पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता था। इस दिन सूर्य उत्तरायण यानि उत्तर की ओर बढ़ता था। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि में अपनी यात्रा समाप्त कर मकर राशि में प्रवेश करता है।
हमारे हिंदू धर्म में व्रत और उपवास तिथि ,चंद्र कैलेंडर के अनुसार रखे जाते हैं। लेकिन मकर संक्रांति ही एकमात्र ऐसा त्योहार है जो सूर्य आधारित कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है।
एक वर्ष में कुल 12 संक्रांतियां आती हैं। जिनमें चार संक्रांतियों का विशेष महत्व है। इसमें मेष, कर्क, तुला और मकर राशि का विशेष महत्व है।
मकर संक्रांति तब होती है, जब पौष माह में सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
निसंदेह मकर संक्रांति को उत्तरायण इसलिए कहा जाता है क्योंकि सूर्य मकर रेखा को पार करके कर्क रेखा की ओर बढ़ता है।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व Religious Significance Of Uttarayan
पौराणिक मान्यता के अनुसार सूर्यदेव शनिदेव के पिता हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य ग्रह यानी शनि के घर में प्रवेश करता है। सूर्यदेव एक माह तक अपने पुत्र के घर रहते हैं। मकर और कुंभ राशि का स्वामी शनि है। इस प्रकार शनि अपने ही घर में हैं। अत: मकर संक्रांति को पिता-पुत्र मिलन की दृष्टि से देखा जाता है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार,
पृथ्वी को राक्षसों के आतंक से मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने राक्षसों का विनाश किया। राक्षसों के सिर काटकर मंदार पर्वत पर दबा दिये गये। तभी से मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है।
मकर संक्रांति नई ऋतु के आगमन का प्रतीक है। शरद ऋतु जा चुकी है और वसंत आ रहा है।
उत्तरायण और दक्षिणायण Uttarayan And Dakshinayan
मकर संक्रांति के बाद दिन बड़े और रातें छोटी हो जाती हैं। साल के छह महीने सूर्य उत्तरायण और छह महीने दक्षिणायन में रहता है।
शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण का अर्थ है देवी-देवताओं का दिन और दक्षिणायण का अर्थ है देवी-देवताओं की रात।
मकर राशि का स्वामी शनि है | वहीं, पिता सूर्य के घर आ जाने से से शनि का प्रभाव कमजोर हो जाता है। इसलिए मकर संक्रांति के दिन सूर्य पूजा, दान, गंगा स्नान और शनिदेव की पूजा करने मात्र से सूर्य और शनि संबंधी शिकायतों से राहत मिलती है।
मकर संक्रांति का इतिहास History Of Uttarayan
- भीष्म पितामह महाभारत के युद्ध के बाद सूर्यास्त तक रुके रहे। मकर संक्रांति के दिन ही उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे।
- मकर संक्रांति के दिन माता यशोदा ने भगवान कृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था।
- गंगा नदी ऋषि के आश्रम से निकलकर समुद्र में मिल गयी। और भागीरथ के पूर्वज महाराज सगर के पुत्रों को मुक्त कर दिया गया।
मकर संक्रांति उपाय How to Celebrate Uttarayan
मकर संक्रांति पर सूर्योदय से पहले स्नान करने से दस हजार गाय दान करने का पुण्य मिलता है।
इस दिन गर्म कपड़े, कंबल, तिल, गुड़ और खिचड़ी का दान करने से सूर्य और शनि की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
मकर संक्रांति के दिन प्रयाग के तट पर स्नान करने मात्र से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है
निष्कर्ष Conclusion
तिल और गुड़ का दान क्यों करें? क्या ये सवाल उठता है?
हमारे भारत में हर त्यौहार को खास तरीके से मनाया जाता है। इसी तरह उस दिन विशेष पकवान भी बनाये जाते हैं| इसी शृंखला के अनुसार मकरसंक्रांति पर तिल-गुड़ और उससे बने उत्पादों को विशेष महत्व दिया जाता है। कुछ जगह तिल और गुड़ से स्वादिष्ट लड्डू बनाए जाते हैं तो कुछ जगह चिक्की बनाई जाती है। इन सभी में तिल और गुड़ से बनी गजक का विशेष महत्व है।
लेकिन दान देने से लेकर खाने तक इसका एक खास वैज्ञानिक कारण है। अर्थात मकर संक्रांति शीत ऋतु के ठंडे दिन पर पड़ती है। तिल और गुड़ के गुण शरीर की गर्मी को बरकरार रखते हैं।
अर्थात मकर संक्रांति शीत ऋतु के ठंडे मौसम पर पड़ती है। तिल और गुड़ के गुणों के अनुसार शरीर में गर्मी बनाए रखने के लिए मकर संक्रांति में तिल का विशेष महत्व है।
ठंड की वजह सेअपनी त्वचा रूखी हो जाती है और तिल में प्रचुर मात्रा में तेल होता है जिसकी वजह से त्वचापर आया रूखापनअंदर से दूर होता है | गुड़ की तासीर गर्म होती है | गुड़ रक्त गुणों को बढ़ाता है जिसके कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसलिए मकर संक्रांति के दिन तिलगुल से बने व्यंजन खाते हैं | इसके अलावा, ठंड से पीड़ित लोगों या जरूरतमंद लोगों को कंबल और गर्म कपड़े दान किए जाते हैं।
फिर साल का पहला त्योहार मकर संक्रांति हमें वैज्ञानिक, पारंपरिक, ज्योतिष शास्त्र के साथ-साथ, हमें दान कर शुभ कर्मों से पुण्य कमाने का संदेश देता है।
धन्यवाद