Shani Dev Ka Itihas – Cosmic Majesty, A Celestial Odyssey 6

Shani Dev Ka Itihas – Cosmic Majesty, A Celestial Odyssey 6

परमकल्याण के कारक शनिदेव Shani dev, the cause of ultimate welfare

शनिदेव परमकल्याण कर्ता न्यायाधीश और जीव का परमहितैषी ग्रह माने जाते हैं। ईश्वर पारायण प्राणी जो जन्म जन्मान्तर तपस्या करते हैं, तपस्या सफ़ल होने के समय अविद्या, माया से सम्मोहित होकर पतित हो जाते हैं, अर्थात तप पूर्ण नही कर पाते हैं, उन तपस्विओं की तपस्या को सफ़ल करने के लिये शनिदेव परम कृपालु होकर भावी जन्मों में पुन: तप करने की प्रेरणा देता है। 

द्रेष्काण कुन्डली मे जब शनि को चन्द्रमा देखता है, या चन्द्रमा शनि के द्वारा देखा जाता है, तो उच्च कोटि का संत बना देता है। और ऐसा व्यक्ति पारिवारिक मोह से विरक्त होकर कर महान संत बना कर बैराग्य देता है। शनि पूर्व जन्म के तप को पूर्ण करने के लिये प्राणी की समस्त मनोवृत्तियों को परमात्मा में लगाने के लिये मनुष्य को अन्त रहित भाव देकर उच्च स्तरीय महात्मा बना देता है।

ताकि वर्तमान जन्म में उसकी तपस्या सफ़ल हो जावे, और वह परमानन्द का आनन्द लेकर प्रभु दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर सके। यह चन्द्रमा और शनि की उपासना से सुलभ हो पाता है। शनि तप करने की प्रेरणा देता है।

और शनि उसके मन को परमात्मा में स्थित करता है। कारण शनि ही नवग्रहों में जातक के ज्ञान चक्षु खोलता है। shani dev

ज्ञान चक्षुर्नमस्तेअस्तु कश्यपात्मज सूनवे। तुष्टो ददासि बैराज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात।

तप से संभव को भी असंभव किया जा सकता है। ज्ञान, धन, कीर्ति, नेत्रबल, मनोबल, स्वर्ग मुक्ति, सुख शान्ति, यह सब कुच तप की अग्नि में पकाने के बाद ही सुलभ हो पाता है। जब तक अग्नि जलती है, तब तक उसमें उष्मा अर्थात गर्मी बनी रहती है। मनुष्य मात्र को जीवन के अंत तक अपनी शक्ति को स्थिर रखना चाहिये। जीवन में शिथिलता आना असफ़लता है। सफ़लता हेतु गतिशीलता आवश्यक है, अत: जीवन में तप करते रहना चाहिये। मनुष्य जीवन में सुख शान्ति और समृद्धि की वृद्धि तथा जीवन के अन्दर आये क्लेश, दुख, भय, कलह, द्वेष, आदि से त्राण पाने के लिये दान, मंत्रों का जाप, तप, उपासना आदि बहुत ही आवश्यक है। इस कारण जातक चाहे वह सिद्ध क्यों न हो ग्रह चाल को देख कर दान, जप, आदि द्वारा ग्रहों का अनुग्रह प्राप्त कर अपने लक्ष्य की प्राप्ति करे।

अर्थात ग्रहों का शोध अवश्य करे। जिस पर ग्रह परमकृपालु होता है, उसको भी इसी तरह से तपाता है। पदम पुराण में राजा दसरथ ने कहा है, शनि ने तप करने के लिये जातक को जंगल में पहुंचा दिया। यदि वह तप में ही रत रहता है, माया के लपेट में नहीं आता है, तप छोड कर अन्य कार्य नही करता है, तो उसके तप को शनि पूर्ण कर देता है, और इसी जन्म में ही परमात्मा के दर्शन भी करा देता है। यदि तप न करके और कुछ ही करने लगे यथा आये थे हरि भजन कों, ओटन लगे कपास, माया के वशीभूत होकर कुच और ही करने लगे, तो शनिदेव उन पर कुपित हो जाते हैं। विष्णोर्माया भगवती यया सम्मोहितं जगत। 

इस त्रिगुण्मयी माया को जीतने हेतु तथा कंचन एव्म कामिनी के परित्याग हेतु आत्माओं को बारह चौदह घंटे नित्य प्रति उपासना, आराधना और प्रभु चिन्तन करना चाहिये। अपने ही अन्त:करण से पूछना चाहिये, कि जिसके लिये हमने संसार का त्याग किया, संकल्प करके चले, कि हम तुम्हें ध्यायेंगे, फ़िर भजन क्यों नही हो रहा है। देवशर्मा यदि चित्त को एकाग्र करके शान्ति पूर्वक अपने मन से ही प्रश्न करेंगे, तो निश्चित ही उत्तर मिलेगा, मन को एकाग्र कर भजन पूजन में मन लगाने से एवं जप द्वारा इच्छित फ़ल प्राप्त करने का उपाय है। जातक को नवग्रहों के नौ करोड मंत्रों का सर्व प्रथम जाप कर ले या करवा ले। shani dev

शनिदेव ने ग्रहत्व कैसे प्राप्त किया था How did Shani Dev attain the planet

स्कन्द पुराण में काशी खण्ड में वृतांत आता है, कि

  • छाया सुत श्री शनिदेव ने अपने पिता भगवान सूर्य देव से प्रश्न किया कि हे पिता! मै ऐसा पद प्राप्त करना चाहता हूँ, जिसे आज तक किसी ने प्राप्त नही किया, हे पिता! आपके मंडल से मेरा मंडल सात गुना बडा हो, मुझे आपसे अधिक सात गुना शक्ति प्राप्त हो, मेरे वेग का कोई सामना नही कर पाये, चाहे वह देव, असुर, दानव, या सिद्ध साधक ही क्यों न हो। आपके लोक से मेरा लोक सात गुना ऊंचा रहे।
  • दूसरा वरदान मैं यह प्राप्त करना चाहता हूँ, कि मुझे मेरे आराध्य देव भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष दर्शन हों, तथा मै भक्ति ज्ञान और विज्ञान से पूर्ण हो सकूं।

शनिदेव की यह बात सुन कर भगवान सूर्य प्रसन्न तथा गदगद हुए, और कह, बेटा! मै भी यही चाहता हूँ, के तू मेरे से सात गुना अधिक शक्ति वाला हो। मै भी तेरे प्रभाव को सहन नही कर सकूं, इसके लिये तुझे तप करना होगा, तप करने के लिये तू काशी चला जा, वहां जाकर भगवान शंकर का घनघोर तप कर, और शिवलिंग की स्थापना कर, तथा भगवान शंकर से मनवांछित फ़लों की प्राप्ति कर ले। शनि देव ने पिता की आज्ञानुसार वैसा ही किया, और तप करने के बाद भगवान शंकर के वर्तमान में भी स्थित शिवलिंग की स्थापना की, जो आज भी काशी-विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है, और कर्म के कारक शनि ने अपने मनोवांछित फ़लों की प्राप्ति भगवान शंकर से की, और ग्रहों में सर्वोपरि पद प्राप्त किया। shani dev

शनि ग्रह के द्वारा परेशान करने का कारण Reasons for trouble by Shani Dev

  • दिमाग मे कई बार विचार आते हैं कि शनि के पास केवल परेशान करने के ही काम हैं?
  • क्या शनि देव के और कोई काम नही हैं जो जातक को बिना किसी बात के चलती हुई जिन्दगी में परेशानी दे देते हैं?
  • क्या शनि से केवल हमी से शत्रुता है?
  • जो कितने ही उल्टे सीधे काम करते हैं, और दिन रात गलत काम में लगे रहते हैं  वे हमसे सुखी होते हैं, आखिर इन सबका कारण क्या है? 

इन सब भ्रान्तियों के उत्तर प्राप्त करने के प्रति जब समाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक, और समाज से जुडे सभी प्रकार के ग्रन्थों को खोजा तो जो मिला वह आश्चर्यचकित कर देने वाला तथ्य था। आज के ही नही पुराने जमाने से ही देखा और सुना गया है जो भी इतिहास मिलता है उसके अनुसार जीव को संसार में अपने द्वारा ही मोक्ष के लिये भेजा जाता है। 

प्रकृति का काम संतुलन करना है, संतुलन में जब बाधा आती है, तो वही संतुलन ही परेशानी का कारण बन जाता है। लगातार आबादी के बढने से और जीविका के साधनों का अभाव पैदा होने से प्रत्येक मानव लगातार भागता जा रहा है, भागने के लिये पहले पैदल व्यवस्था थी, मगर जिस प्रकार से भागम भाग जीवन में प्रतिस्पर्धा बढी विज्ञान की उन्नति के कारण तेज दौडने वाले साधनों का विस्तार हुआ, जो दूरी पहले सालों में तय की जाती थी, वह अब मिनटों में तय होने लगी, यह सब केवल भौतिक सुखों के प्रति ही हो रहा है, जिसे देखो अपने भौतिक सुख के लिये भागता जा रहा है।

किसी को किसी प्रकार से दूसरे की चिन्ता नही है, केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये किसी प्रकार से कोई यह नही देख रहा है कि उसके द्वारा किये जाने वाले किसी भी काम के द्वारा किसी का अहित भी हो सकता है, सस्दस्य परिवार के सदस्यॊं को नही देख रहे हैं, परिवार परिवारों को नही देख रहे हैं, गांव गांवो को नही देख रहे हैं, शहर शहरों को नही देख रहे हैं, प्रान्त प्रान्तों को नही देख रहे हैं, देश देशों को नही देख रहा है, अन्तराष्ट्रीय भागम्भाग के चलते केवल अपना ही स्वार्थ देखा और सुना जा रहा है। इस भागमभाग के चलते मानसिक शान्ति का पता नही है कि वह किस कौने मैं बैठ कर सिसकियां ले रही है, जब कि सबको पता है कि भौतिकता के लिये जिस भागमभाग में मनुष्य शामिल है वह केवल कष्टों को ही देने वाली है। 

जिस हवाई जहाज को खरीदने के लिये सारा जीवन लगा दिया, वही हवाई जहाज एक दिन पूरे परिवार को साथ लेकर आसमान से नीचे टपक पडेगा, और जिस परिवार को अपनी पीढियों दर पीढियों वंश चलाना था, वह क्षणिक भौतिकता के कारण समाप्त हो जायेगा। रहीमदास जी ने बहुत पहले ही लिख दिया था कि, गो धन, गज धन बाजि धन, और रतन धन खान, जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान। तो जिस संतोष की प्राप्ति हमे करनी है, वह हमसे कोसों दूर है। जिस अन्तरिक्ष की यात्रा के लिये

आज करोंडो अरबों खर्च किये जा रहे हैं, उस अंतरिक्ष की यात्रा हमारे ऋषि मुनि समाधि अवस्था मे जाकर पूरी कर लिया करते थे, अभी कुछ समय पहले का ही उदाहरण है कि अमेरिका ने अपने मंगल अभियान के लिये जो यान भेजा था, उसने जो तस्वीरें मंगल ग्रह से धरती पर भेजीं, उनमे एक तस्वीर को देख कर अमेरिकी अंतरिक्ष विभाग नासा के वैज्ञानिक भी सकते में आ गये थे। वह तस्वीर हमारे भारत में पूजी जाने वाली मंगल मूर्ति हनुमानजी के चेहरे से मिलती थी, उस तस्वीर में साफ़ दिखाई दे रहा था कि उस चेहरे के आस पास लाल रंग की मिट्टी फ़ैली पड़ी है। जबकि हम लोग जब से याद सम्भाले हैं, तभी से कहते और सुनते आ रहे हैं, 

लाल देह लाली लसे और धरि लाल लंगूर, बज्र देह दानव दलन, जय जय कपि सूर।

आप भी नासा की बेब साइट फ़ेस आफ़ द मार्स को देख कर विश्वास कर सकते हैं, या फ़ेस आफ़ मार्स को गूगल सर्च से खोज सकते हैं। मै आपको बता रहा था कि शनि अपने को परेशानी क्यों देता है, शनि हमें तप करना सिखाता है, या तो अपने आप तप करना चालू कर दो या शनि जबरदस्ती तप करवा लेगा, जब पास में कुछ होगा ही नहीं, तो अपने आप भूखे रहना सीख जाओगे, जब दिमाग में लाखों चिन्तायें प्रवेश कर जायेंगी, तो अपने आप ही भूख प्यास का पता नही चलेगा। तप करने से ही ज्ञान, विज्ञान का बोध प्राप्त होता है। तप करने का मतलब कतई सन्यासी की तरह से समाधि लगाकर बैठने से नही है,

तप का मतलब है जो भी है उसका मानसिक रूप से लगातार एक ही कारण को कर्ता मानकर मनन करना। और उसी कार्य पर अपना प्रयास जारी रखना।

शनि shani dev ही जगत का जज है, वह किसी भी गलती की सजा अवश्य देता है, उसके पास कोई माफ़ी नाम की चीज नही है, जब पेड बबूल का बोया है तो बबूल के कांटे ही मिलेंगे आम नही मिलेंगे, धोखे से भी अगर चीटी पैर के नीचे दब कर मर गई है, तो चीटी की मौत की सजा तो जरूर मिलेगी, चाहे वह हो किसी भी रूप में। जातक जब जब क्रोध, लोभ, मोह, के वशीभूत होकर अपना प्राकृतिक संतुलन बिगाड लेता है, और जानते हुए भी कि अत्याचार, अनाचार, पापाचार, और व्यभिचार की सजा बहुत कष्टदायी है, फ़िर भी अनीति वाले काम करता है तो रिजल्ट तो उसे पहले से ही पता होते हैं, लेकिन संसार की नजर से तो बच भी जाता है, लेकिन उस 

संसार के न्यायाधीश शनि की नजर से तो बचना भगवान शंकर के बस की बात नहीं थी

तो एक तुच्छ मनुष्य की क्या बिसात है। तो जो काम यह समझ कर किये जाते हैं कि मुझे कौन देख रहा है, और गलत काम करने के बाद वह कुछ समय के लिये खुशी होता है, अहंकार के वशीभूत होकर वह मान लेता है, मै ही सर्वस्व हूँ, और ईश्वर को नकारकर खुद को ही सर्व नियन्ता मन लेता है, उसकी यह न्याय का देवता शनि बहुत बुरी गति करता है। shani dev

  • जो शास्त्रों की मान्यताओं को नकारता हुआ,
  • मर्यादाओं का उलंघन करता हुआ, जो केवल अपनी ही चलाता है,

तो उसे समझ लेना चाहिये, कि वह दंड का भागी अवश्य है। शनिदेव की द्रिष्टि बहुत ही सूक्षम है, कर्म के फ़ल का प्रदाता है, तथा परमात्मा की आज्ञा से जिसने जो काम किया है, उसका यथावत भुगतान करना ही उस देवता का काम है। जब तक किये गये अच्छे या बुरे कर्म का भुगतान नही हो जाता, शनि उसका पीछा नहीं छोडता है।

भगवान शनि देव परमपिता आनन्द कन्द श्री कृष्ण चन्द के परम भक्त हैं, और श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा से ही प्राणी मात्र केर कर्म का भुगतान निरंतर करते हैं। shani dev

यथा-शनि राखै संसार में हर प्राणी की खैर। ना काहू से दोस्ती और ना काहू से बैर ॥

शनि देव मंत्र Shani Dev Mantra

शनिदेव बीज मंत्र Shani Dev Beej Mantra

ॐ शं शनैश्चराय नमः

Shani Dev Shingnapur

शनिदेव व्यासविरचित मंत्र Shani Dev Vyasvirchit Mantra

ॐ निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम | छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम

Shani Dev Shingnapur

शनिदेव वेदोक्त मंत्र Shani Dev Vedokt Mantra

ॐ शमाग्निभि: करच्छन्न: स्तपंत सूर्य शंवातोवा त्वरपा अपास्निधा:

Shani Dev Shingnapur

शनिदेव तंत्रोक्त मंत्र Shani Dev Tantrokt Mantra

ॐ प्रां. प्रीं. प्रौ. स: शनेश्वराय नमः

Shani Dev Shingnapur

शनिदेव आरती Shani Dev Aarti

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी |

सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ||

|| जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ||

श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी |

नीलांबर धार नाथ गज की असवारी ||

|| जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ||

क्रीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी |

मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी ||

|| जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ||

मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी |

लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ||

|| जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ||

देव दनुज ऋषि मुनि सुरत नर नारी |

विश्वनाथ धरत ध्यान शरण है तुम्हारी ||

|| जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ||

धन्यवाद !! shani dev

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