Ramayan – Mata Ahilya’s Redemption, A Mystical Journey1

Ramayan – Mata Ahilya’s Redemption, A Mystical Journey1

आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार,

Mata Ahilya’s Redemption A Mystical Journey in the Ramayan !!

आज हम प्रभु श्री राम ने किस तरह माता अहिल्या का उद्धार किस तरह किया इस कथा के बारे में जानेंगे |

साथ ही साथ माता अहिल्या उद्धार के समय रामायण में लिखी गई कुछ पंक्तियों  के बारे में यहां विस्तार से जानेंगे |

इस ब्लॉग में, हम आपको माता अहिल्या के रहस्यमय उद्धार की गहराईयों में ले जाते हैं – प्रेम, परिस्थितियाँ, और आध्यात्मिक सहमति की कहानी।

गौतम ऋषि पत्नी अहिल्या Wife Of Gautam Rishi – Mata Ahilya Ramayan

ब्रह्मा जी की पुत्री अहिल्या को यह वरदान प्राप्त था कि वह सदा ही 16 वर्ष की आयु के सदृश ही रहेंगी। ब्रह्मा जी ने एक स्पर्धा करवाई, जिसे गौतम ऋषि ने जीता और अहिल्या को पत्नी रूप में प्राप्त किया।

अहिल्या के रूप की चर्चा तीनों लोकों में थी। अपने रूप, गुण, सौन्दर्य और पतिव्रत धर्म के पालन के कारण ही वह भक्तों के मन में बसी हुई हैं।

देवराज इन्द्र ने जब अहिल्या के बारे में सुना तो उन्होंने सूर्य से उसकी सुन्दरता के बारे में पूछा।

सूर्यदेव ने इन्द्र देव की भावना भांप कर अपनी असमर्थता जताई। तब इंद्र ने चंद्रमा से पूछा तो उसने कहा कि अहल्या से अधिक रूपवती, गुणवान और पतिव्रता स्त्री सारी सृष्टि में कोई और नहीं है।

ऐसा सुनकर इन्द्र ने छल रूप से अहिल्या को पाने का प्रयास करते हुए चंद्रमा की सहायता ली। योजना बनाई कि जब ऋषि गौतम प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में गंगा स्नान को जाते हैं वही समय अहिल्या को पाने के लिए सही है।

इंद्र ने चन्द्रमा को अपने काम में साथ देने के लिए उन्हें ऋषि के आश्रम के ऊपर ही टिके रहने के लिए कहा ताकि जब वह किसी को आश्रम की ओर आता देखे तो वह आश्रम के ऊपर से हट जाए क्योंकि चंद्रमा के हटने पर किसी को शक भी नहीं होगा तथा इन्द्र को ऋषि के आने की सूचना भी चंद्रमा के इस संकेत से मिल जाएगी।

अहिल्या को पाने की लालसा से आधी रात को ही इंद्र ने मुर्गा बन कर बांग लगाई और ऋषि गौतम प्रात: हो गई सोचकर गंगा स्नान के लिए आश्रम से निकल गए।

तब इंद्र ने झट से ऋषि गौतम का वेश बनाया और आश्रम में जाने लगे तो अहिल्या ने अपने तपोबल के प्रभाव से इंद्र को पहचान लिया और कहा कि ‘यदि मेरे पति हो तो आश्रम में आ जाओ’। इंद्र के छल की लालसा को देखकर अहिल्या ने उसे श्राप दिया कि तुम्हें कोढ़ हो जाए। दूसरी तरफ जब ऋषि गौतम ने गंगा स्नान करने के लिए कमंडल में जल भरा तो गंगा मां ने कहा कि अभी तो आधी रात हुई है, तो ऋषि आश्रम की ओर वापस चल पड़े।

आश्रम के बाहर उन्होंने अपने वेश में ही इन्द्र को अपने साथ टकरा कर जाते हुए देखा और छत पर चन्द्रमा को पहरेदारी करते देखकर सारी स्थिति को भांप लिया। ऋषि पत्नी अहिल्या उनके जल्दी आश्रम में लौट आने की चिंता में जैसे ही बाहर आई तो ऋषि गौतम ने अहिल्या को शिला होने और चन्द्रमा को इन्द्र का साथ देने के लिए उसमें दाग होने और ग्रहण लगने का तत्काल श्राप दे दिया।

जिसके प्रभाव से अहिल्या आश्रम के बाहर एक पत्थर की शिला बन गई। देवर्षि नारद ने तब ऋषि गौतम को अहिल्या के बेकसूर होने के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि श्राप तो नहीं मिटाया जा सकता परन्तु उन्होंने अहिल्या को एक वरदान भी दिया कि सूर्यवंशी भगवान श्री राम जब उस शिला के साथ अपने चरणों का स्पर्श करेंगे तो वह पूर्ववत हो जाएगी।

Ramayan

धर्मग्रंथों में चंद्रमा के कलंक लगने और ग्रहण लगने के बारे में भी अनेक कथाएं मिलती हैं, परंतु ऋषि गौतम का श्राप भी उनमें से एक है।

मिथिला में राजा जनक के धनुष यज्ञ को दिखाने के लिए गुरु विश्वामित्र उन्हें साथ लेकर जा रहे थे तो ‘आश्रम एक दीख मग माहीं, खग, मृग, जीव जन्तु तंह नाहीं, पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी, सकल कथा मुनि कहा बिसेषी’।

गुरु विश्वामित्र ने बताया ‘गौतम नारी श्राप बस उपल देह धरि धीर, चरण कमल रज चाहति, कृपा करो रघुबीर’।

श्री राम जी के पवित्र एवं शोक का नाश करने वाले चरणों का स्पर्श पाते ही वह तपोमूर्ति अहल्या प्रकट हो गई और भक्तों को सुख देने वाले प्रभु को सामने देखकर वह प्रभु चरणों से लिपट गई।

Ramayan

रामायण की चौपाई Chaupai Given In Ramayan With Meaning

परसत पद पावन सोकनसावन प्रगट भई तपपुंज सही।

देखत रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही॥

अति प्रेम अधीरा पुलक शरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही।

अतिसय बड़भागी चरनन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही॥

भावार्थ Ramayan श्री रामजी के पवित्र और शोक को नाश करने वाले चरणों का स्पर्श पाते ही सचमुच वह तपोमूर्ति अहल्या प्रकट हो गई। भक्तों को सुख देने वाले श्री रघुनाथजी को देखकर वह हाथ जोड़कर सामने खड़ी रह गई। अत्यन्त प्रेम के कारण वह अधीर हो गई। उसका शरीर पुलकित हो उठा, मुख से वचन कहने में नहीं आते थे। वह अत्यन्त बड़भागिनी अहल्या प्रभु के चरणों से लिपट गई और उसके दोनों नेत्रों से जल (प्रेम और आनंद के आँसुओं) की धारा बहने लगी॥

धीरजु मन कीन्हा प्रभु कहुँ चीन्हा रघुपति कृपाँ भगति पाई।

अति निर्मल बानी अस्तुति ठानी ग्यानगम्य जय रघुराई॥

मैं नारि अपावन प्रभु जग पावन रावन रिपु जन सुखदाई।

राजीव बिलोचन भव भय मोचन पाहि पाहि सरनहिं आई॥

भावार्थ Ramayan:-फिर उसने मन में धीरज धरकर प्रभु को पहचाना और श्री रघुनाथजी की कृपा से भक्ति प्राप्त की। तब अत्यन्त निर्मल वाणी से उसने (इस प्रकार) स्तुति प्रारंभ की- हे ज्ञान से जानने योग्य श्री रघुनाथजी! आपकी जय हो! मैं (सहज ही) अपवित्र स्त्री हूँ, और हे प्रभो! आप जगत को पवित्र करने वाले, भक्तों को सुख देने वाले और रावण के शत्रु हैं। हे कमलनयन! हे संसार (जन्म-मृत्यु) के भय से छुड़ाने वाले! मैं आपकी शरण आई हूँ, (मेरी) रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए॥

मुनि श्राप जो दीन्हा अति भल कीन्हा परम अनुग्रह मैं माना।

देखेउँ भरि लोचन हरि भव मोचन इहइ लाभ संकर जाना॥

बिनती प्रभु मोरी मैं मति भोरी नाथ न मागउँ बर आना।

पद कमल परागा रस अनुरागा मम मन मधुप करै पाना॥

भावार्थ Ramayan मुनि ने जो मुझे शाप दिया, सो बहुत ही अच्छा किया। मैं उसे अत्यन्त अनुग्रह (करके) मानती हूँ कि जिसके कारण मैंने संसार से छुड़ाने वाले श्री हरि (आप) को नेत्र भरकर देखा। इसी (आपके दर्शन) को शंकरजी सबसे बड़ा लाभ समझते हैं। हे प्रभो! मैं बुद्धि की बड़ी भोली हूँ, मेरी एक विनती है। हे नाथ ! मैं और कोई वर नहीं माँगती, केवल यही चाहती हूँ कि मेरा मन रूपी भौंरा आपके चरण-कमल की रज के प्रेमरूपी रस का सदा पान करता रहे॥

जेहिं पद सुरसरिता परम पुनीता प्रगट भई सिव सीस धरी।

सोई पद पंकज जेहि पूजत अज मम सिर धरेउ कृपाल हरी॥

एहि भाँति सिधारी गौतम नारी बार बार हरि चरन परी।

जो अति मन भावा सो बरु पावा गै पति लोक अनंद भरी॥

भावार्थ Ramayan- जिन चरणों से परमपवित्र देवनदी गंगाजी प्रकट हुईं, जिन्हें शिवजी ने सिर पर धारण किया और जिन चरणकमलों को ब्रह्माजी पूजते हैं, कृपालु हरि (आप) ने उन्हीं को मेरे सिर पर रखा। इस प्रकार (स्तुति करती हुई) बार-बार भगवान के चरणों में गिरकर, जो मन को बहुत ही अच्छा लगा,

उस वर को पाकर गौतम की स्त्री अहल्या आनंद में भरी हुई पतिलोक को चली गई॥

अस प्रभु दीनबंधु हरि कारन रहित दयाल।

तुलसिदास सठ तेहि भजु छाड़ि कपट जंजाल॥

भावार्थ Ramayan प्रभु श्री रामचन्द्रजी ऐसे दीनबंधु और बिना ही कारण दया करने वाले हैं। तुलसीदासजी कहते हैं, हे शठ (मन)! तू कपट-जंजाल छोड़कर उन्हीं का भजन कर॥

|| जय श्रीराम ||

धन्यवाद!!

आपको माता अहिल्या की कहानी कैसी लगी कृपया हमें कमेंट कर कर बताइए |Ramayan

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